नई दिल्ली। दिवाला और दिवालियापन
संहिता (आईबीसी), 2016 में घरेलू खरीदारों को वित्तीय लेनदारों के रूप में
स्वीकारने के लिए लाए गए संशोधन को लोकसभा में मंगलवार को पारित कर दिया
गया, जबकि विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि "यह बदलाव केवल एक उद्योग की
मदद के लिए किया गया है।"
वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा
संशोधन) विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी मामलों के
परिसमापन के बजाए उनका समाधान किया जाए। उन्होंने कहा कि दिवालियापन कानून
समिति ने 26 मार्च को अपनी रिपोर्ट जमा की और समिति की हर सिफारिश को
संशोधन में स्वीकार कर लिया गया है।
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इस विधेयक को इस साल की शुरुआत
में सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की जगह लेने के लिए लाया गया है, जिसे
गोयल ने 23 जुलाई को पेश किया था। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के
दौरान गोयल ने अपने जवाब में कहा, "हम चाहते थे कि लाभ (समिति की सिफारिशों
के) को तुरंत समाधान प्रक्रिया में शामिल किया जाए। मुझे लगता है कि सरकार
का ध्यान समाधान पर होना चाहिए, तरलता पर नहीं। तरलता हमारा अंतिम विकल्प
होना चाहिए। और प्रक्रिया में देरी से नौकरियों के नुकसान की संभावना अधिक
है।"
उन्होंने अध्यादेश लाने की आवश्यकता को भी घर खरीदारों के
हितों की रक्षा से जोड़ा, जो अब वित्तीय लेनदारों के रूप में माने जाएंगे।
उन्होंने
कहा, "घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है और यही
कारण है कि अध्यादेश लाया गया। हालांकि कोई भी प्रावधान पूर्व प्रभाव से
लागू नहीं किया गया है, इसलिए किसी को भी व्यक्ति विशेष या उद्योग को लाभ
पहुंचाने के लिए इसे लाने का कोई सवाल नहीं है।"
उन्होंने कहा कि
पूर्व सरकारों के दौरान, बड़े कर्जदारों ने वापस भुगतान करने की चिंता नहीं
की थी, क्योंकि ऐसा माहौल बनाया गया था कि उन्हें लगता था कि कर्ज वसूलने
की जिम्मेदारी बैंकों की ही है, न कि कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी उनकी है।
उन्होंने कहा, "हमने उस स्थिति को बदल दिया है। अब, बड़े कर्जदारों द्वारा
बैंकों से लिए गए कर्ज चुकाए जा रहे हैं।"उन्होंने कहा कि पहले की
प्रक्रिया के दौरान समाधान की लागत बहुत अधिक थी, जिसे अब कम किया गया है।
उन्होंने
कहा, "इससे पहले, वसूली की लागत नौ फीसदी थी और इसमें सात से आठ साल लगते
थे। उसके बाद भी वसूली की प्रक्रिया अटक जाती थी। आईबीसी के तहत, वसूली की
लागत को एक फीसदी से भी कम कर दिया गया है और औसत वसूली 55 फीसदी रही है,
जबकि कुछ मामलों में 100 फीसदी तक वसूली की गई है।"
आईएएनएस
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