इस बारे में कोई संशय नहीं है क्योंकि इस बिंदु पर कानून बिल्कुल
स्पष्ट है।
उन्होंने कहा कि संसद (लोकसभा) में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को विपक्ष का
नेतृत्व देने से मना करने से एक गलत मिसाल कायम होगी और लोकतंत्र कमजोर
होगा।
उन्होंने कहा कि इस दलील में कोई दम नहीं है कि चूंकि के पास सदन के कुल
सदस्यों का दस फीसदी हिस्सा नहीं है, इसलिए वह विपक्ष के नेता के दर्जे के
लिए दावा नहीं कर सकती है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि सदन के एक सदस्य को विपक्ष के नेता के
रूप में मान्यता देना राजनीतिक या अंक संबंधी नहीं बल्कि एक वैधानिक निर्णय
है।
लोकसभा अध्यक्ष को सिर्फ यह तय करना है कि क्या पद का दावा करने वाली पार्टी विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है या नहीं।
(आईएएनएस)
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