कोर्ट में तलब किए जाने पर आर्थिक अपराध शाखा ने वहां बताया कि मिली
शिकायत में दर्ज आरोपियों के हस्ताक्षर के नमूने जांच के लिए भेजे गए हैं।
इस पर अदालत ने जो फाइलें देखीं उसके बाद उसने तत्काल एफआईआर दर्ज करने के
आदेश आर्थिक अपराध शाखा को दे दिए। उसी के बाद शाखा ने एफआईआर दर्ज की।
एफआईआर दर्ज कराने वाले विजय सेखरी दिल्ली के छतरपुर इलाके में रहते हैं।
एफआईआर में नामजद आरोपियों में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, उनकी पत्नी जेनीफर टाइटलर
के साथ-साथ तमिलनाडु की सन रियल स्टेट प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई के
वेंकटासुभा राव, विजय भास्कर, रविंद्र नाथ बाला कवि, मैसर्स गोल्डन
मूमेंट्स करोलबाग, राकेश वधावन (कमला नगर दिल्ली), दिल्ली के संजय ग्रोवर,
हरीश मेहता का भी नाम शामिल है।
इस पूरे
मामले को लेकर कई बार जगदीश टाइटलर से उनका पक्ष जानने को लेकर बात करने की
कोशिश की। कई बार प्रयास के बाद भी उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।
एफआईआर में दर्ज विवरण और शिकायतकर्ता के मुताबिक, "मामला 1990 के दशक का
है। विजय सेखरी और जगदीश टाइटलर दोनो पक्षों और उनकी फर्मों ने संयुक्त रूप
से मिलकर 50-50 फीसदी की हिस्सेदारी में मध्य दिल्ली के करोलबाग इलाके में
दो रिहाइशी संपत्तियां खरीदी थीं। सन 2013 में दोनों संपत्तियां रिहाइशी
से बदलकर व्यवसायिक श्रेणी में शामिल कर ली गईं।
शिकायतकर्ता विजय सेखरी के मुताबिक, सन 2009 के आसपास पता चला कि जगदीश
टाइटर पक्ष ने संपत्तियों के दस्तावेज अपने पक्ष में कर लिए हैं। लिहाजा हम
लोग हक पाने के लिए कंपनी लॉ बोर्ड चले गए। कंपनी लॉ बोर्ड ने दोनों
संपत्तियों की कीमत 90 करोड़ आंकी थी। साथ ही आदेश दिया कि हमारे पक्ष को
हमारा हिस्सा दे दिया जाए। कंपनी लॉ बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ जगदीश
टाइटलर पक्ष हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने संपत्तियों की कीमत दुबारा
पता करवाई। हाईकोर्ट ने भी यही आदेश दिया कि हमारा हिस्सा जो बनता है वो
शेयर हमारे पक्ष को दे दिया जाये।"
सन 2017 में हाईकोर्ट के फैसले को लेकर आरोपी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच
गया।
शिकायतकर्ता विजय सेखरी
के मुताबिक, "सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुकुल मुद्गल से री-वेल्यूशन कराया।
तब दोनों संपत्तियों की कीमत करीब 270 करोड़ निकल कर सामने आई। सुप्रीम
कोर्ट ने भी उस रकम में से हमारा हिस्सा करीब 25 फीसदी का शेयर (करीब 60-65
करोड़) हमें देने को कहा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, दोनो
संपत्तियों की नीलामी की जाए। तभी यह पैसा इकट्टठा हो पायेगा।"
सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा गया कि जिन विवादित संपत्तियों को नीलाम करना
है, उनमें किराएदार रह रहे हैं। ऐसे में उनकी बिक्री असंभव है। लिहाजा पहले
किराएदारों से संपत्तियों को मुक्त कराया जाए।
विजय सेखरी ने आईएएनएस को बताया कि बाद में हमारे पक्ष को आरटीआई के जरिये
पता चला कि तमाम दस्तावेज, खासकर विवादित संपत्तियों में किरायेदार मौजूद
होने संबंधी दस्तावेज, कथित रुप से हेर-फेर करके तैयार किए गए हैं। तब
मैंने दिल्ली पुलिस आर्थिक अपराध शाखा का रुख किया। जहां महीनों पड़ताल के
बाद भी रिजल्ट जीरो रहा। तब मुझे अदालत से एफआईआर करा कर जल्दी से जल्दी
जांच पूरी कराने की दरखास करनी पड़ी।
(आईएएनएस)
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