नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने सोमवार को उच्च न्यायालय को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री की बिना अनुमति के छात्रों द्वारा स्क्रीनिंग और निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद विरोध प्रदर्शन आयोजित करना घोर अनुशासनहीनता है। न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की पीठ कांग्रेस के छात्रसंघ एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव लोकेश चुघ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के आरोप में निष्कासित कर दिया गया है।
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विश्वविद्यालय ने कहा, हमने उन छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की, जिन्होंने डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की। यह कार्रवाई समाचार पत्रों की रिपोर्ट के आधार पर की गई जिसमें कहा गया था कि दो-भाग की इस डॉक्यूमेंटी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
डीयू के वकील ने कहा, चुग विरोध-प्रदर्शन का मास्टरमाइंड था और उस वीडियो फुटेज से पता चलता है कि वह विश्वविद्यालय परिसर में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में सक्रिय रूप से शामिल था।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के अकादमिक कामकाज को बाधित करने की मंशा से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है।
डीयू ने अदालत को बताया कि उस दिन पुलिस ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लगाई थी, जिसके बावजूद छात्रों ने विरोध किया।
उन्होंने कहा, समिति ने वीडियो देखने के बाद पाया कि आंदोलन का मास्टरमाइंड याचिकाकर्ता ही था। समिति द्वारा यह देखा गया कि लगभग 20 छात्र शाम 4 बजे बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के लिए एकत्र हुए थे और लगभग 50 और छात्र उक्त वृत्तचित्र को देखने के लिए वहां मौजूद थे।
अदालत ने कहा कि डीयू की प्रतिक्रिया और चुग का काउंटर रिकॉर्ड में नहीं है और तदनुसार दोनों वकीलों को मंगलवार तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए कहते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अप्रैल की तारीख तय की।
डीयू ने नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के चुघ और एक पीएचडी शोधार्थी पर विश्वविद्यालय, कॉलेज या विभाग की किसी भी य परीक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
पिछली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कौरव ने टिप्पणी की थी कि विश्वविद्यालय के आदेश में दिमाग का इस्तेमाल किया गया नहीं लगता है।
अदालत ने कहा, दिमाग का एक निरपेक्ष उपयोग होना चाहिए जो आदेश में परिलक्षित नहीं हो रहा है ..आदेश में तर्क झलकना चाहिए।
डीयू की ओर से पेश वकील मोहिंदर रूपल ने कहा था कि विश्वविद्यालय का फैसला कुछ दस्तावेजों पर आधारित था, जिसे वह उपलब्ध कराना चाहते हैं, जबकि चुघ के वकील ने दावा किया था कि उनकी पीएचडी थीसिस जमा करने की समय सीमा 30 अप्रैल है इसलिए समय की जल्दबाजी है।
न्यायमूर्ति कौरव ने जवाब दिया था कि याचिकाकर्ता के अदालत में आने के बाद उसके अधिकारों की रक्षा की जाएगी।
अदालत ने आदेश दिया था, श्री मोहिंदर रूपल ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा है। इसे तीन कार्य दिवसों में किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता इसके बाद दो दिनों में प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी स्वतंत्र है।
यह मामला 27 जनवरी, 2023 को डीयू परिसर में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन से जुड़ा है, जिसमें आम दर्शकों को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' भी दिखाई गई थी।
चुघ ने अपनी याचिका में दावा किया है कि विरोध के दौरान वह वहां नहीं थे क्योंकि वह मीडिया से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा, विशेष रूप से, याचिकाकर्ता उस समय एक लाइव साक्षात्कार दे रहा था जब कला संकाय (मुख्य परिसर) के अंदर डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की जा रही थी। इसके बाद, पुलिस ने कुछ छात्रों को हिरासत में लिया और बाद में उन पर अशांति फैलाने का आरोप लगाया। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता को न तो हिरासत में लिया गया था और न ही पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार की उकसाने या हिंसा या शांति भंग करने का आरोप लगाया गया था।
हालांकि, डीयू ने उन्हें 16 फरवरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने स्क्रीनिंग के दौरान विश्वविद्यालय में कानून व्यवस्था को बाधित किया था। 10 मार्च को उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए एक ज्ञापन जारी किया गया था।
चुघ ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उनके खिलाफ विश्वविद्यालय का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और अनुशासनात्मक अधिकारी उन्हें आरोपों और आरोपों के बारे में सूचित करने में भी विफल रहे। इसलिए, चुघ ने मांग की कि कानून और व्यवस्था के उल्लंघन में शामिल होने का दावा करने वाले ज्ञापन और नोटिस को अलग रखा जाए। उन्होंने ज्ञापन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है।
--आईएएनएस
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