नई दिल्ली । भारत आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में जिन उंचाईयों को छू रहा है। उसका श्रेय देश के महान वैज्ञानिकों को जाता है। इन्हीं में से एक थे विक्रम साराभाई, जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) की नींव रखी।
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फादर ऑफ इंडियन स्पेस प्रोग्राम के नाम से मशहूर विक्रम साराभाई ही थे, जिन्होंने भारत सरकार को स्पेस का महत्व समझाया। उन्हीं के प्रयासों के कारण आज इसरो मंगल से लेकर मून तक पहुंचकर भारत के तिरंगे की शान बढ़ा रहा है।
डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के एक महान वैज्ञानिक थे। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक कहा जाता है। साराभाई का जन्म 12, अगस्त 1919 को अहमदाबाद के उद्योगपति परिवार में हुआ था। वे अंबालाल व सरला देवी के आठ बच्चों में से एक थे।
उन्हें बचपन में ही गुरुदेव रवीन्द्रनाथ, जे कृष्णामूर्ति, मोतीलाल नेहरु, वी.एस. श्रीनिवास शास्त्री, जवाहरलाल नेहरु, सरोजनी नायडू, मौलाना आजाद, सीएफ एड्रूज, सी.वी. रमन जैसी कुछ महान हस्तियों से मिलने का मौका मिला। महात्मा गांधी भी एक बार उनके घर में रहे थे। इन महान हस्तियों ने विक्रम साराभाई को बहुत ही प्रभावित किया था।
डॉ. विक्रम साराभाई ने विमान दुर्घटना में होमी भाभा के मृत्यु के बाद मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद संभाला। वे हमेशा से यह चाहते थे कि विज्ञान के नए प्रयोग आम आदमी तक पहुंचे। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की। साराभाई के प्रयासों से ही 1969 में इसरो की स्थापना हुई। वे इसके पहले चेयरमैन थे।
यहीं पर एक ऐसी शख्सियत से मुलाकात हुई जिन्होंने इन्हें अपना गुरु मान लिया। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि युवा वैज्ञानिक एपीजे कलाम थे। जो आगे चलकर भारत के मिसाइलमैन नाम से मशहूर हुए और बतौर राष्ट्रपति देश की कमान भी संभाली।
साराभाई ही थे, जिन्हें डॉ. अब्दुल कलाम की प्रतिभा को निखारने का काम किया। कलाम की मेहनत के वे काफी कायल थे। इसलिए 'डॉ. विक्रम साराभाई ने कई अहम प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी।
बताया जाता है कि जब विक्रम साराभाई ने दुनिया को अलविदा कहा। उनसे बात करने वाले आखिरी शख्स डॉ. अब्दुल कलाम ही थे। मौत से एक घंटे पहले उन्होंने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से टेलीफोन पर बातचीत की थी। इसकी अगली सुबह यानी 31, दिसंबर 1971 को उनकी मौत हो गई। मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताई गई।
डॉ. विक्रम साराभाई को 1962 में शांति स्वरुप भटनागर पदक से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया। भारतीय डाक विभाग द्वारा उनकी मृत्यु की पहली बरसी पर 1972 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
--आईएएनएस
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