नई दिल्ली । हिंदी भाषा के
इस्तेमाल को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, खासकर सरकार
द्वारा राजभाषा को लेकर सरकार के कदम के बाद यह विवाद और बढ़ गया है। पिछले
कुछ दिनों के घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार के मुख्य लक्ष्य
में से एक हिंदी है।
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ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय भाषाओं के उपयोग और महत्व की वकालत की है।
पीएम
मोदी ने बुधवार को कहा कि अंग्रेजी सिर्फ संचार का माध्यम है, बौद्धिक
होने का पैमाना नहीं। गांधीनगर में गुजरात सरकार के मिशन स्कूल ऑफ
एक्सीलेंस पहल में बोलते हुए पीएम ने कहा कि अंग्रेजी को केवल संचार का
माध्यम होने के बावजूद पहले बौद्धिक होने का मानदंड माना जाता था।
उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश को गुलाम मानसिकता से बाहर निकालने और प्रतिभा और नवाचार को निखारने का एक प्रयास है।
पीएम
ने कहा, देखिए, देश में क्या स्थिति थी? अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को बुद्धि
के माप के रूप में लिया गया, जबकि भाषा सिर्फ संचार का माध्यम है।
पीएम ने कहा कि इतने दशकों से भाषा ऐसी बाधा बन गई है कि देश को गांवों और गरीब परिवारों में प्रतिभा का लाभ नहीं मिल सका।
उन्होंने
कहा, इतने प्रतिभाशाली बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर नहीं बन सके क्योंकि
उन्हें उस भाषा में अध्ययन करने का अवसर नहीं मिला, जिसे वे समझते थे। अब
यह स्थिति बदली जा रही है। अब भारतीय भाषाएं में भी छात्रों को विज्ञान,
प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि का अध्ययन करने का विकल्प मिलने लगा है।
पीएम
ने कहा कि एक गरीब मां भी, जो अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में नहीं पढ़ा
सकती, उसे डॉक्टर बनाने का सपना देख सकती है और एक बच्चा अपनी मातृभाषा
में डॉक्टर बन सकता है।
उन्होंने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की
सरकार की योजना के बारे में बात करते हुए कहा, हम उस दिशा में काम कर रहे
हैं ताकि एक गरीब परिवार का व्यक्ति भी डॉक्टर बन सके। कई भारतीय भाषाओं के
साथ-साथ गुजराती भाषा में पाठ्यक्रम बनाने के प्रयास चल रहे हैं।
इससे
पहले, गृह मंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर को भोपाल, मध्य प्रदेश में हिंदी
में पहला एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू किया और कहा कि आज चिकित्सा शिक्षा
हिंदी में शुरू हो रही है और जल्द ही हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी
शुरू हो जाएगी। इंजीनियरिंग की किताबों का अनुवाद देश भर में आठ भाषाओं में
शुरू हो गया है और जल्द ही छात्र अपनी मातृभाषा में तकनीकी और चिकित्सा
शिक्षा हासिल कर सकेंगे।
इससे पहले, सूत्रों ने दावा किया था कि
संसद की राजभाषा समिति ने पिछले महीने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश की
गई अपनी रिपोर्ट के 11वें खंड में कहा था कि अंग्रेजी को केवल शिक्षा का
माध्यम होना चाहिए, जहां यह बिल्कुल जरूरी है और धीरे-धीरे उन संस्थानों
में अंग्रेजी को हिंदी से बदल दिया जाना चाहिए।
समिति ने सिफारिश की
है कि देश के सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में शिक्षा और अन्य
गतिविधियों के माध्यम के रूप में हिंदी का उपयोग किया जाना चाहिए और
अंग्रेजी के उपयोग को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए।
समिति ने कहा कि
जब तक विश्वविद्यालयों, तकनीकी या चिकित्सा संस्थानों सहित उच्च शिक्षण
संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी नहीं है, तब तक हिंदी एक आम भाषा
नहीं हो सकती।
जबकि दक्षिणी राज्यों, विशेष रूप से तेलंगाना और
तमिलनाडु में विपक्षी आवाजों के बारे में कई रिपोर्ट हैं, समिति के
उपाध्यक्ष, बीजद सांसद भर्तृहरि महताब ने कहा कि ये प्रतिक्रियाएं निराधार
हैं।
उन्होंने कहा, मैं समिति की ओर से अपने विचार और प्रतिक्रिया
नहीं दे सकता। ये बातें निराधार हैं कि तमिलनाडु को राजभाषा अधिनियम के तहत
छूट दी गई है। वहां नियम लागू नहीं हो सकते हैं। ऐसा नहीं है कि वे यह
नहीं जानते हैं, फिर भी वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं।
केरल के लिए,
किसी भी राज्य पर हिंदी नहीं थोपी जा रही है। 1976 से लागू अधिनियम में,
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएं रही हैं। हमारी ओर से केवल इतना कहा गया है
कि हिंदी का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार जो कि श्रेणी (ए) में
संस्थान हैं। कुछ मीडिया द्वारा दी गई शब्दावली भ्रामक और गलत है।
रिपोर्ट
में कहा गया है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हिंदी के
प्रगतिशील उपयोग के आधार पर तीन समूहों (क्षेत्रों) में विभाजित किया गया
है, बीजद नेता ने कहा, हमने यह व्यवस्था नहीं की है। यह 1976 से अस्तित्व
में है, जब इंदिरा गांधी सरकार थी। तब से यह व्यवस्था चल रही है। इसमें कोई
बदलाव नहीं किया गया है।
--आईएएनएस
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