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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सवाल उठाने वाले हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ अदालत की अवमानना का केस चलाने की मांग

Demand to run a case of contempt of court against the former High Court judge who questioned the Supreme Court remarks - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया है, जिसमें नूपुर शर्मा मामले में शीर्ष अदालत की टिप्पणियों के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एन. ढींगरा के बयान के खिलाफ अदालती कार्यवाही की आपराधिक अवमानना शुरू करने की मांग की गई है। एडवोकेट सी. आर. जया सुकिन ने एक पत्र में कहा है कि एक टीवी साक्षात्कार में न्यायमूर्ति ढींगरा ने कहा है कि शीर्ष अदालत को इस तरह की टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है और आरोप लगाया कि अदालत ने शर्मा को सुने बिना ही फैसला सुना दिया।

पत्र में कहा गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति ढींगरा ने शर्मा के मामले में शीर्ष अदालत की टिप्पणियों को 'गैर-जिम्मेदार', 'अवैध' और 'अनुचित' करार दिया है।

सुकिन ने पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी और वरिष्ठ अधिवक्ता के. राम कुमार के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की मांग की है, जिन्होंने जस्टिस ढींगरा की तरह ही शीर्ष अदालत की टिप्पणियों पर सवाल उठाया है।

1 जुलाई को, शीर्ष अदालत ने पैगंबर मुहम्मद पर उनकी विवादास्पद टिप्पणी के लिए नूपुर शर्मा को फटकार लगाई थी और कहा था कि वह अकेले ही देश में पैदा हो रही परेशानी के लिए जिम्मेदार हैं। शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया था कि 29 जून को एक दर्जी कन्हैया लाल की निर्मम हत्या से संबंधित उदयपुर में दुर्भाग्यपूर्ण घटना के साथ लोगों में व्याप्त गुस्सा शर्मा के बयान के बाद ही सामने आया है, इसलिए इसके लिए वही जिम्मेदार हैं।

पत्र में कहा गया है, "जस्टिस एस. एन. ढींगरा, वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी और के. राम कुमार के बयान सभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रकाशित हुए। उपरोक्त तीनों व्यक्तियों ने असंसदीय बयानों और अपमानजनक टिप्पणियों से भारतीय न्यायपालिका और देश को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। इसलिए यह न्यायालयों की अवमानना अधिनियम, 1971 के दायरे में आता है।"

सुकिन ने कहा कि तीनों ने देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम करने और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करने का प्रयास किया है, जिससे लोगों के मन में सर्वोच्च न्यायालय की अखंडता पर सवाल उठे हैं। पत्र में कहा गया है, "उपरोक्त बयान और उसका प्रकाशन सर्वोच्च न्यायालय को बदनाम करता है, पूर्वाग्रहों और न्यायिक कार्यवाही और न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता है।"

सुकिन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान का पहला व्याखाकार और संरक्षक है और इस देश के मूलभूत ढांचे के प्रति विश्वास की कमी और सरासर अवमानना को देखकर बहुत दुख होता है।

उन्होंने अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 और अन्य नियमों के तहत ढींगरा, लेखी और कुमार के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए एजी की सहमति मांगी है।

--आईएएनएस

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