नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश राकेश सयाल ने उनकी याचिका 1 मार्च को खारिज कर दी थी, जिसके बाद खान ने हाईकोर्ट का रुख किया।
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मामले की सुनवाई करने वाली न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने खान की याचिका यह कहकर खारिज कर दी थी कि वह जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं। अदालत ने खान जैसे सार्वजनिक हस्तियों के दायित्व पर जोर देते हुए कहा कि वे अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों के पीछे की सच्चाई को उजागर करने में जांच एजेंसियों की मदद करें। एजेंसी द्वारा जारी किए गए समन को बार-बार नजरअंदाज करना न्याय में बाधा डालने जैसा है और यह आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करता है।
अदालत ने कहा कि कानून प्रवर्तन में सहयोग सार्वजनिक सेवा का एक रूप है, जो शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जरूरी है। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि एक निर्वाचित प्रतिनिधि होने के नाते खान को कानूनी जांच से छूट नहीं मिल सकती और उनके कार्यों पर उन लोगों द्वारा बारीकी से नजर रखी जाती है, जिनकी वे सेवा करते हैं।
इस तर्क को खारिज करते हुए कि विधायक के रूप में खान के कर्तव्यों ने उन्हें ईडी के सामने पेश होने से रोका, अदालत ने सार्वजनिक पद पर रहने के बावजूद कानून के तहत समान व्यवहार करने की जरूरत पर जोर दिया। ईडी ने हाल ही में इस मामले में आरोपियों को तलब किया था। इसने अग्रिम जमानत अर्जी का भी यह तर्क देते हुए विरोध किया था कि अगर खान को गिरफ्तारी से पहले जमानत दी गई, तो वह जांच में सहयोग नहीं कर सकते।
ईडी का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष लोक अभियोजक मनीष जैन और साइमन बेंजामिन ने पहले कहा था कि खान ने पहले समन के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन बाद में अपनी याचिका वापस ले ली थी।
खान ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) और ईडी द्वारा दायर मामलों को रद्द करने का निर्देश देने की भी मांग की थी।
खान का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने भी पहले दलील दी थी और अंतरिम सुरक्षा का अनुरोध किया था, लेकिन अदालत ने राहत देने से इनकार कर दिया।
मेनका ने बताया कि खान को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तलब किया गया था। उन्होंने एक ही मामले में दो एफआईआर दर्ज होने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था, पहली एफआईआर 23 नवंबर, 2016 को सीबीआई द्वारा दर्ज की गई थी, जो दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में खान की कथित गलत नियुक्ति से संबंधित थी। उन्होंने आपराधिक कानून के सिद्धांत का हवाला दिया था जो एक कारण के लिए दो एफआईआर पर रोक लगाता है। यह देखते हुए कि एजेंसी द्वारा मामले को बंद किए जाने के बावजूद दूसरी एफआईआर पहले जैसे आरोपों पर आधारित थी और इसे प्रशासनिक अनियमितता बताया गया था।
उन्होंने यह भी बताया कि दोनों मामलों में पिछले जमानत आदेशों से यह निष्कर्ष निकला कि सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि रिश्वतखोरी या अपराध की आय की वसूली का कोई सबूत नहीं था।
विशेष न्यायाधीश सयाल ने हाल ही में जीशान हैदर, उनकी पार्टनरशिप फर्म स्काईपावर, जावेद इमाम सिद्दीकी, दाऊद नासिर और कौसर इमाम सिद्दीकी के खिलाफ मामले में दायर ईडी आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था। मामला ओखला में कथित तौर पर अवैध धन से अर्जित की गई 36 करोड़ रुपये की संपत्ति से संबंधित है, जो कथित तौर पर खान से प्रभावित था। उसने कथित तौर पर 8 करोड़ रुपये नकद दिए थे।
जांच के दौरान ईडी ने सीबीआई, एसीबी और दिल्ली पुलिस द्वारा पहले दर्ज की गई एफआईआर पर विचार किया। ईडी ने कहा कि संपत्ति खान के कहने पर खरीदी गई थी और 27 करोड़ रुपये के नकद लेनदेन के सबूत पेश किए गए।
--आईएएनएस
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