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दिल्ली हाईकोर्ट ने समग्र एकीकृत औषधीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए दायर जनहित याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

Delhi High Court seeks response from Center on PIL filed for adopting holistic integrated medicinal approach - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एलोपैथी, आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी और होम्योपैथी के औपनिवेशिक अलग तरीके के बजाय स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए एक भारतीय समग्र एकीकृत औषधीय ²ष्टिकोण को लागू करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा।

न्यायमूर्ति नवीन चावला के साथ ही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की खंडपीठ ने प्रतिवादियों को मामले में नोटिस जारी किया, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय शामिल थे। पीठ ने कहा कि अदालत केंद्र को जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने का निर्देश देगी।

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि आखिरकार ये नीतिगत मुद्दे हैं, जिन पर उन्हें विचार करना है। प्रतिवादियों को आठ सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए अदालत ने सुनवाई के लिए आठ सितंबर की तारीख तय की।

भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका में कहा है कि सक्रिय हेल्थ वर्कर्स का पर्याप्त अनुपात पर्याप्त रूप से योग्य नहीं पाया गया और 20 प्रतिशत से अधिक योग्य स्वास्थ्य पेशेवर सक्रिय नहीं हैं।

लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है और लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रही है और इनमें से 52 प्रतिशत डॉक्टर सिर्फ पांच राज्यों महाराष्ट्र (15 प्रतिशत), तमिलनाडु (12 प्रतिशत), कर्नाटक ( 10 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (8 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (7 प्रतिशत) में हैं।

जनहित याचिका में आगे कहा गया है कि इस प्रकार, ग्रामीण भारतीय क्षेत्र अभी भी औषधीय लाभों से वंचित हैं। ये परिणाम राज्यों में स्वास्थ्य कार्यबल की अत्यधिक विषम परिस्थिति यानी एक जगह पर अधिक तो दूसरी जगह पर कम को दिखाता है। कहा गया है कि चूंकि अधिकांश एलोपैथिक डॉक्टर पांच राज्यों में रहते हैं, जिससे अन्य राज्यों के चिकित्सा लाभों को केवल डॉक्टरों की शेष 48 प्रतिशत आबादी का एक सीमित हिस्सा ही मिल पाता है।

चूंकि डॉक्टर कुछ राज्यों तक ही सीमित हैं, लेकिन मरीज पूरे भारत में रहते हैं, इसने कई स्वास्थ्य देखभाल मध्यस्थों की शुरूआत की है और वे भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की अखंडता को खराब कर रहे हैं, क्योंकि वे बेहतर इलाज प्रदान करने के नाम पर मरीजों से मोटी कमाई कर रहे हैं। इसमें आगे कहा गया है कि यह स्थिति अत्यधिक अनैतिक और अवैध है, क्योंकि यह बीमार व्यक्तियों को स्वास्थ्य पर आने वाले अधिक खर्चे का भुगतान करने में असमर्थता के कारण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने से वंचित कर देगी।

भारत में डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए हमारे पास चिकित्सा पेशेवरों का एक वैकल्पिक बल है, जिनकी सरकार द्वारा हमेशा उपेक्षा की गई है और जो हमारी स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति के उत्थान के लिए एक सहायता प्रदान करने में सक्षम हैं।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि 7.88 लाख आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी (एयूएच) डॉक्टर हैं। 80 प्रतिशत उपलब्धता मानते हुए, यह अनुमान है कि 6.30 लाख एयूएच डॉक्टर सेवा के लिए उपलब्ध हो सकते हैं और एलोपैथिक डॉक्टरों के साथ मिलकर माना जाता है कि यह लगभग 1: 1000 के डॉक्टर की आबादी का अनुपात है।

उन्होंने अनुच्छेद 21, 39 (ई), 41, 43, 47, 48 (ए) के तहत गारंटीकृत स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए एलोपैथी, आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के एक समग्र एकीकृत सामान्य पाठ्यक्रम और सामान्य पाठ्यक्रम को लागू करने की मांग की।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र को एलोपैथी, आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के विशेषज्ञों वाली एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया जाना चाहिए, ताकि विकसित देशों और विशेष रूप से चीन और जापान के एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल ²ष्टिकोण पर भी गौर किया जा सके।

--आईएएनएस

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Web Title-Delhi High Court seeks response from Center on PIL filed for adopting holistic integrated medicinal approach
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