नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को निर्देश दिया कि वह छात्र संघ (जेएनयूएसयू) के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ शुक्रवार (20 जुलाई) तक कोई सख्त कदम न उठाए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष पर 2016 की घटना के संबंध में विश्वविद्यालय के एक पैनल द्वारा जुर्माना लगाया गया था, जिसमें उन पर एक समारोह में भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने यह आदेश कन्हैया की याचिका पर सुनाया है, जिसमें उन्होंने जुर्माने के विश्वविद्यालय के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की पीठ छुट्टी पर है, इसलिए न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने शुक्रवार तक इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी है। कन्हैया की याचिका वकील तरन्नुम चीमा और हर्ष बोरा की तरफ से दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने चार जुलाई को अपने मुख्य प्रॉक्टर के माध्यम से जेएनयू द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग की है।
चार जुलाई के आदेश में जेएनयू ने कन्हैया को अनुशासन के नियमों व जेएनयू के छात्रों के उचित आचरण की धारा 3 के तहत दोषी ठहराया और उनपर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। धारा 3 छात्रों के किसी कृत्य को कुलपति या किसी अन्य संबंधित प्राधिकारी द्वारा अनुशासन या आचरण का उल्लंघन मानने पर लगाई जाती है।
आदेश 11 फरवरी, 2016 को स्थापित एक उच्चस्तरीय जांच समिति द्वारा रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया है।कन्हैया ने अपनी याचिका में कहा था कि इस आदेश में न्याय के सिद्धांतों पर गौर करने में भारी चूक हुई है और दिल्ली उच्च न्यायालय के 12 अक्टूबर, 2017 को जारी निर्देशों का उल्लंघन किया गया है।
एक उच्चस्तरीय जांच में छात्र-कार्यकर्ता उमर खालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्बान भट्टाचार्य फरवरी 2016 में एक मामले में दोषी पाए गए थे, जिसमें छात्रों के एक समूह ने कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाए थे।
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