नई दिल्ली। वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा की करारी हार हुई थी, मगर इस बार पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे के लिए नेताओं में होड़ है। इसके पीछे दो प्रमुख वजह बताई जा रही है। एक तो 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर पार्टी ने क्लीनस्वीप किया, दूसरी बात मोदी सरकार की ओर से डेढ़ हजार से अधिक अवैध कालोनियों का नियमितीकरण कर करीब 40 लाख लोगों को फायदा पहुंचाने का फैसला। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इससे नेताओं को लगता है कि इस बार पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, संगठन मंत्री सिद्धार्थन और महामंत्रियों के कार्यालयों में ऐसे उम्मीदवारों का बायोडाटा पहुंच रहा है। अभी चुनाव कार्यक्रम भी घोषित नहीं हुआ है, ऐसे में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। भाजपा सूत्रों ने बताया कि चुनाव लडऩे के लिए मची होड़ का आलम यह है कि हर सीट पर औसतन 40-40 नेताओं के बायोडाटा जमा हो चुके हैं।
इनमें से योग्य और गंभीर उम्मीदवारों की तलाश के लिए भाजपा सर्वे एजेंसियों का सहारा लेगी। ये एजेंसियां केंद्रीय कार्यालय ने पहले से हायर कर रखी हैं। एजेंसियों की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर हर सीट के दावेदारों की स्क्रीनिंग कर कम से कम तीन नेताओं की लिस्ट तैयार की जाएगी। यही लिस्ट प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में भेजी जाएगी। हर विधानसभा क्षेत्र में सर्वे एजेंसियां टिकट दावेदारों की जिताऊ क्षमता का आकलन करेंगी।
एजेंसियां अपने सैंपल सर्वे में शामिल लोगों के सामने दावेदारों के नाम रखकर पसंदीदा प्रत्याशी चुनने को कहेंगी। जनता की पसंद के हिसाब से दावेदारों का वरीयता क्रम तय करते हुए सर्वे एजेंसियां रिपोर्ट पार्टी को देंगी। यह सर्वे रिपोर्ट दावेदारों की छवि, उनका व्यवहार, क्षेत्र में सक्रियता, सामाजिक संगठनों से जुड़ाव, फैन फॉलोइंग आदि पर आधारित होगा।
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