नई दिल्ली । पुलित्जर
पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी केवल एक साधारण
गोलीबारी में नहीं मारे गए थे, बल्कि तालिबान द्वारा उनकी बेरहमी से हत्या
की गई थी। माइकल रुबिन ने वाशिंगटन एक्जामिनर में यह दावा किया है।
स्थानीय अफगान अधिकारियों का कहना है कि सिद्दीकी ने अफगानिस्तान की
राष्ट्रीय सेना की टीम के साथ स्पिन बोल्डक क्षेत्र की यात्रा की थी, ताकि
पाकिस्तान के साथ लगती सीमा को नियंत्रित करने के लिए अफगान बलों और
तालिबान के बीच संघर्ष को कवर किया जा सके। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
रिपोर्ट में कहा गया है
कि जब वे सीमा शुल्क चौकी के एक-तिहाई मील के भीतर पहुंच गए, तो तालिबान के
हमले से टीम विभाजित हो गई और इस दौरान कमांडर और कुछ लोग सिद्दीकी से अलग
हो गए।
इस हमले के दौरान सिद्दीकी को र्छे लगे, जिसके बाद वह और
उनकी टीम एक स्थानीय मस्जिद में गए, जहां उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही यह खबर फैली कि एक पत्रकार मस्जिद में है,
तालिबान ने हमला कर दिया।
स्थानीय जांच से पता चलता है कि तालिबान ने सिद्दीकी की मौजूदगी के कारण ही मस्जिद पर हमला किया था।
रिपोर्ट
के अनुसार, सिद्दीकी जिंदा था और तालिबान ने उसे पकड़ लिया। तालिबान ने
सिद्दीकी की पहचान की पुष्टि की और फिर उसे और उसके साथ के लोगों को भी मार
डाला। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमांडर और उनकी टीम के बाकी सदस्य उन्हें
बचाने की कोशिश में मारे गए।
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के एक
सीनियर फेलो रुबिन ने रिपोर्ट में लिखा है, हालांकि एक व्यापक रूप से
प्रसारित सार्वजनिक तस्वीर में सिद्दीकी के चेहरे को पहचानने योग्य दिखाया
गया है, मैंने अन्य तस्वीरों और सिद्दीकी के शरीर के एक वीडियो की समीक्षा
की, जो मुझे भारत सरकार के एक सूत्र द्वारा प्रदान किया गया था, जिसमें
दिखाया गया है कि तालिबान ने सिद्दीकी को सिर के चारों ओर पीटा और फिर उसके
शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया।
रुबिन ने कहा कि तालिबान की ओर
से सिद्दीकी को शिकार बनाने, उन्हें मारने और फिर उनकी लाश को क्षत-विक्षत
करने का निर्णय दिखाता है कि वे युद्ध के नियमों या वैश्विक समुदाय के
व्यवहार को नियंत्रित करने वाले कन्वेंशन का सम्मान नहीं करते हैं।
रुबिन
ने रिपोर्ट में कहा, खमेर रूज और तालिबान के बीच कई समानताएं हैं। दोनों
ने नस्लवादी दुश्मनी के साथ कट्टरपंथी विचारधारा का संचार किया है। तालिबान
हमेशा क्रूर रहा है, लेकिन संभवत: वे इस बार उनकी क्रूरता को एक नए स्तर
पर ले गए, क्योंकि सिद्दीकी एक भारतीय थे। वे यह भी एक संकेत देना चाहते
हैं कि पश्चिमी पत्रकारों का उनके नियंत्रण वाले किसी भी अफगानिस्तान में
स्वागत नहीं है और वे उम्मीद करते हैं कि तालिबान के प्रचार को सच्चाई के
रूप में स्वीकार किया जाएगा।
रुबिन ने रिपोर्ट में लिखा, वास्तव
में, सिद्दीकी की हत्या से पता चलता है कि तालिबान ने निष्कर्ष निकाला है
कि उनकी 9/11 से पहले की गलती यह नहीं थी कि वे क्रूर और निरंकुश थे, बल्कि
यह कि वे हिंसक या अधिनायकवादी नहीं थे।
पत्रकारों के लिए असली सवाल यह है कि विदेश विभाग सिद्दीकी की मौत को महज एक दुखद दुर्घटना बताने का ढोंग क्यों कर रहा है।
--आईएएनएस
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