नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी के लिए हाथ में आया एक सुनहरा मौका उस वक्त निकल गया, जब शनिवार को उसने 12 घंटे तक चले लंबे विचार-विमर्श के बाद पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान एक बार फिर सोनिया गांधी को सौंप दी। पार्टी के पास मौका था कि वह वंशवाद के टैग को हटा सकती थी, नए एवं युवा चेहरों को पार्टी में पदों पर स्थान दे सकती थी, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया और एक बार फिर पार्टी की पुरानी रक्षक ने पार्टी के अध्यक्ष पद पर बाजी मारी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
शनिवार को 12 घंटे से अधिक लंबे विचार-विमर्श ने कांग्रेस समर्थकों को आशा दी थी कि एक नया चेहरा सामने आएगा। पार्टी के पास कुछ युवा तुर्क हैं जो बुद्धिमान हैं, सक्षम हैं, बहुत कड़ी मेहनत करते हैं और भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजनीतिक हमलों का जवाब देने में सक्षम हैं और साथ ही सरकार को घेरने का दम रखते हैं।
इन नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुकुल वासनिक, सचिन पायलट, मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम शामिल है। ये सभी क्षमतावान हैं और पार्टी के प्रति समर्पित हैं। हालांकि, सोनिया गांधी के करीबी पुरानी ब्रिगेड के नेता जिनमें अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं, उन्होंने सोनिया को गिरती सेहत के बावजूद अंतरिम अध्यक्ष के रूप में लौटने के लिए राजी कर लिया।
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