नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लागू कर दिया है। इसके लिए सरकार की तरफ से अधिसूचना जारी कर दी गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से पोर्टल भी तैयार है। इस पोर्टल पर नागरिकता पाने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
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नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 का उद्देश्य है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की सुविधा दी जाए।
इस कानून के मुताबिक तीन पड़ोसी देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन सभी अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोला जाएगा, जो लंबे समय से भारत में शरण लिए हुए हैं। इन लोगों ने भारत में इसलिए शरण लिया था, क्योंकि अपने मुल्कों में धार्मिक प्रताड़ना झेली थी। इस कानून में किसी भी भारतीय चाहे वह किसी मजहब का हो उसकी नागरिकता छीनने का कोई भी प्रावधान नहीं है।
भारतीय संसद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को 11 दिसंबर 2019 को पारित किया गया था। इस विधेयक को राष्ट्रपति ने 12 दिसंबर को मंजूरी दी थी। मोदी सरकार और उसके समर्थक जहां इसे ऐतिहासिक कदम बता रहे थे, वहीं, विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे लेकर काफी विरोध कर रहे थे। इस एक्ट के लागू होने के बाद नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरीके से केंद्र सरकार के पास होगा।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। जो लोग 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आकर बसे थे, उन्हें ही नागरिकता मिलेगी, जिन्होंने अपने देश में धार्मिक प्रताड़ना झेली थी, कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना जाएगा, जो भारत में बिना पासपोर्ट और वीजा के घुस आए हैं।
नागरिकता पाने के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन प्रक्रिया रखी गई है। ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार है। नागरिकता पाने के लिए आवेदक को अपना वह साल बताना होगा, जब उन्होंने बिना किसी दस्तावेज के भारत में प्रवेश किया था। आवेदक से किसी तरीके का कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। आवेदन के बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और फिर आवेदक को नागरिकता जारी कर दी जाएगी।
संसद में विधेयक पेश किए जाने के बाद 4 दिसंबर 2019 को असम में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। प्रदर्शकारियों को भ्रम था कि उनके 'राजनीतिक, सांस्कृतिक और भूमि अधिकारों' का नुकसान होगा। 15 दिसंबर 2019 को नई दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया के पास शाहीनबाग में धरना प्रदर्शन हुआ। दिल्ली पुलिस ने 16 दिसंबर को एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आसिफ इकबाल तन्हा और शरजील इमाम सहित कई छात्रों को भड़काने वालों के रूप में नामित किया गया था।
जनवरी 2020 में सामाजिक कार्यकर्ता-अधिवक्ता अमित साहनी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें दिल्ली पुलिस प्रमुख और क्षेत्र के डीसीपी को इस खंड और ओखला अंडरपास को बंद करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
3 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की गई। याचिका में कहा गया कि प्रदर्शनकारी दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाली मुख्य सड़क को अवरुद्ध करके लोगों के लिए कठिनाई पैदा कर रहे हैं। यह स्वीकार करते हुए कि लोगों को विरोध करने का मौलिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी 2020 को दो वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन को शाहीनबाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को उनकी नाकेबंदी खत्म करने के लिए मनाने के लिए वार्ताकार नियुक्त किया।
कोविड-19 महामारी के प्रकोप और उसके बाद लॉकडाउन ने सीएए के आसपास विरोध प्रदर्शनों और चर्चाओं को दबा दिया। कोरोनो वायरस के खिलाफ लड़ाई के चलते दिल्ली सरकार ने 16 मार्च 2020 को घोषणा कर दी कि 50 से अधिक लोगों की किसी भी सभा (धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
फरवरी 2020 के बाद सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं लगाई गईं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 27 दिसंबर 2023 को कहा था कि कोई भी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के कार्यान्वयन को नहीं रोक सकता क्योंकि यह देश का कानून है।
उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह करने का आरोप भी लगाया। 3 जनवरी 2024 को रिपोर्ट सामने आई कि सीएए के नियम केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए हैं और 2024 में लोकसभा चुनावों की घोषणा से "बहुत पहले" अधिसूचित किए जाएंगे।
--आईएएनएस
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