नई दिल्ली। मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम का मानना है कि संशोधित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े शामिल किए जाने के बाद राजकोषीय घाटा फिसलकर असल में 3.1 फीसदी पर आ जाएगा। इसलिए वह वित्त वर्ष 2019-20 में वित्तीय घाटा लक्ष्य को बढ़ाकर 3.4 फीसदी किए जाने से चिंतित नहीं हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि पूर्व जीडीपी आंकड़ों के आधार पर भी सरकार इस साल का लक्ष्य हासिल करने में महज 0.03 फीसदी यानी कुछ ही हजार करोड़ रुपये से विफल रही है।
कृष्णमूर्ति वित्तीय समेकन की दिशा में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि राज्यों को केंद्र द्वारा 42 फीसदी की बड़ी रकम का हस्तांतरण होने और सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बावजूद देश की वित्तीय-व्यवस्था नियंत्रित रही।
वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बजट के बाद एक साक्षात्कार में कहा कि बजटीय अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2019 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.34 था। वास्तविक आंकड़ा 3.36 फीसदी रहने का अनुमान है। परंपरानुसार, यह मोटे तौर 3.4 फीसदी माना जाता है। इस प्रकार वास्तविक फिसलन 0.02 फीसदी है, जोकि महज कुछ हजार करोड़ रुपये के तुल्य है। उन्होंने कहा कि पुराने जीडीपी आकलन के आधार पर राजकोषीय घाटे का आंकड़ा 3.36 फीसदी है और इसमें संशोधित आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जोकि पिछले गुरुवार को जारी किए गए थे।
उन्होंने बताया कि अगर आप संशोधित जीडीपी विकास दर का उपयोग करें तो हमारा आकलन है कि अगले वित्त वर्ष का अधार 225 लाख करोड़ रुपये होगा, जिससे राजकोषीय घाटा फिसलकर 3.1 फीसदी रह जाएगा।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि हमें उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने से पहले उनका अध्ययन करना है। सरकार ने राजकोषीय विवेक का काफी अच्छी तरह अनुपालन किया है। उन्होंने भरोसा जताया कि राजकोषीय दायित्व व बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के अनुसार, इसे घटाकर 2021 तक तीन फीसदी तक लाने की दिशा में प्रयास जारी है। इस बात पर गौर करना काफी अहम है कि राज्यों को 42 फीसदी का बड़ा हिस्सा (राजस्व का) हस्तांतरित किए जाने और सातवें वेतन आयोग (की सिफारिशें) को लागू किए जाने के बावजूद राजकोषीय घाटे का यह आंकड़ा हासिल हुआ है।
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