नई दिल्ली। सीबीआई में मचे घमासान पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई जारी है। शीर्ष कोर्ट ने मोदी सरकार से कड़ाई से सवाल पूछे है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि सीबीआई बनाम सीबीआई विवाद दो टॉप अधिकारियों के बीच की ऐसी लड़ाई नहीं थी जो रातोंरात सामने आई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं था कि सरकार सिलेक्शन समिटी से बातचीत किए बिना सीबीआई निदेशक की शक्तियों को तुरंत खत्म करने का फैसला लेना पडा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
गुरुवार को बहस की शुरूआत करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि अखिल भारतीय सेवाएं के सदस्यों के मामले का निपटारा सीवीसी एक्ट, 2003 की धारा 8(2) के तहत होता है। सवाल यह है कि सीबीआई का निदेशक बनने के बाद क्या कोई व्यक्ति अखिल भारतीय सेवाएं का सदस्य रहता है? पुलिस एक्ट में ऐसा कही नहीं लिखा कि जिस व्यक्ति की योग्यता निदेशक बनने की है उसे पुलिस सेवा पर लागू होने वाले नियमों से छूट है।
जिसके जवाब में सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि आलोक वर्मा की दलील यह है कि उनके अधिकार वापस लेने संबंधी कोई भी कार्रवाई वीनीत नारायण जजमेंट के विपरीत है और ऐसा करने के लिए सेलेक्शन कमेटी की स्वीकृति की आवश्यकता है। सीजेआई ने तुषार मेहता से कहा कि सीबीआई निदेशक के अधिकार वापस लेने पहले सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या मुश्किल थी? जिसके जवाब में स्त्र ने कहा कि यह ट्रांसफर का मामला नहीं था। तब सीजेआई ने कहा कि फिर भी सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या कठिनाई थी?
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