नई दिल्ली। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार स्वच्छता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करती आई है। खासकर 2,525 किमी लम्बी गंगा की सफाई को लेकर तो पीएम समेत कई प्रमुख नेताओं ने सरकार का प्रमुख एजेंडा बताया था। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई काम होता दिखाई नहीं दे रहा है। सिर्फ हो रही है तो बयानबाजी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
देशवासियों को जानकर और भी हैरानी होगी कि नमामी गंगे योजना शुरू करने के बाद बीते दो वर्षों में सरकार तय बजट का एक चौथाई यानि 25 प्रतिशत भी खर्च नहीं कर सकी है। इस बात का खुलासा किया है सरकारी पैसे की पाई-पाई का हिसाब रखने वाली संस्था नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक (कैग) ने। कैग ने अपनी 160 पन्नों की रिपोर्ट में सरकार को आईना दिखाने का काम किया है।
कितना बजट और कितना हुआ खर्च?
सरकारी कुप्रबंधन के कारण इस योजना दम तोड़ती जा रही है। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा प्रोग्राम के तहत अप्रैल 2015 से लेकर मार्च 2017 तक खर्च के लिए 6,700 रुपए आवंटित किए थे। लेकिन इस दौरान सिर्फ 1,660 करोड़ ही खर्च हो पाए।
संसद में पिछले सप्ताह पेश की गई कैग की रिपोर्ट में कहा कि, "परफॉर्मेंस ऑडिट से यह खुलासा होता है कि फाइनैंशल मैनेजमेंट, प्लानिंग, इम्प्लिमेंटेशन और मॉनिटरिंग में खामी के चलते पर्याप्त राशि खर्च नहीं हुई।"
उमा भारती को हटाकर नितिन गडकरी को सौंपा थी जिम्मेदारी
वहीं इस मामले में जब जल संसाधन मंत्रालय से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। गौरतलब है कि पूर्व में यह मंत्रालय उमा भारती के पास था। इसके बाद यह मंत्रालय नितिन गडकरी को सौंपा गया था।
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