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लड़कियों की तुलना में लडक़ों का यौन उत्पीडऩ ज्यादा!

नई दिल्ली। देश में अक्सर जब बात बच्चों से यौन उत्पीडऩ के मामलों की आती है तो दिमाग में लड़कियों के साथ होने वाली यौन उत्पीडऩ की घटनाएं आंखों के सामने उमडऩे लगती हैं, लेकिन इसका एक पहलू कहीं अंधकार में छिप सा गया है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की 2007 की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश में 53.22 फीसदी बच्चों को यौन शोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा, जिसमें से 52.94 फीसदी लडक़े इन यौन उत्पीडऩ की घटनाओं का शिकार हुए।

चेंज डॉट ओआरजी के माध्यम से बाल यौन उत्पीडऩ के मामले को उठाने वाली याचिकाकर्ता, फिल्म निर्माता और लेखक इंसिया दरीवाला ने मुंबई से फोन पर आईएएनएस को बताया, ‘‘सबसे बड़ी समस्या है कि इस तरह के मामले कभी सामने आती ही नहीं क्योंकि हमारे समाज में बाल यौन उत्पीडऩ को लेकर जो मानसिकता है उसके कारण बहुत से मामले दर्ज ही नहीं होते और होते भी हैं तो मेरी नजर में बहुत ही कम ऐसा होता है। इस तरह के मामले सामने आने पर समाज की पहली प्रतिक्रिया होती है कि लडक़ों के साथ तो कभी यौन शोषण हो नहीं सकता, क्योंकि वे पुरुष हैं और पुरुषों के साथ कभी यौन उत्पीडऩ नहीं होता।’’

उन्होंने कहा, ‘‘समाज का जो यह नजरिया है लडक़ों को देखने का ठीक नहीं है क्योंकि पुरुष बनने से पहले वह लडक़े और बच्चे ही होते हैं। बच्चों की यह जो श्रेणी है काफी दोषपूर्ण है इसमें कोई लडक़ा-लडक़ी का भेद नहीं होता। लडक़ों का जो शोषण हो रहा है अधिकतर पुरुषों द्वारा ही हो रहा है। मेरे हिसाब से यह काफी नजरअंदाज कर दी जाने वाली सच्चाई है और मैं पहले भी कई बार बोल चुकी हूं हम जो बच्चों व महिलाओं पर यह यौन हिंसा हमारे समाज में देख रहे हैं, कहीं न कहीं हम उसकी जड़ को नहीं पकड़ पा रहे हैं।’’

लडक़ों के साथ यौन उत्पीडऩ होने पर बताने में कतराने की वजह के सवाल पर फिल्मनिर्माता ने कहा, ‘‘दरअसल जब समाज में किसी लडक़ी के साथ यौन उत्पीडऩ की घटना होती है तो समाज की पहली प्रतिक्रिया हमदर्दी की होती है, उन्हें बचाने के लिए सपोर्ट सिस्टम होता है लेकिन अगर कोई लडक़ा अपने साथ हुए यौन उत्पीडऩ के मामले को लेकर बोलता भी है तो पहले लोग उसपर हंसेंगे, उसका मजाक उड़ाएंगे व मानेंगे भी नहीं और उसकी बातों का विश्वास नहीं करेंगे, कहेंगे तुम झूठ बोल रहे हो यह तो हो नहीं सकता। हंसी और मजाक बनाए जाने के कारण लडक़ों को आगे आने से डर लगता है इसलिए समाज बाल यौन उत्पीडऩ में एक अहम भूमिका निभा रहा है।’’

उन्होंने बताया, ‘‘पिछले एक साल में जब से मैंने अपना अभियान और लोगों से बात करना शुरू किया है तब से काफी चीजें हुई हैं। इसलिए मैं सरकार की शुक्रगुजार हूं कि कम से कम वह इस ओर ध्यान दे रहे हैं। आज सामान्य कानूनों को निष्पक्ष बनाने की प्रक्रिया चल रही है, इसकी शुरुआत पॉस्को कानून से हुई और अब धारा 377, पुरुषों के दुष्कर्म कानून को भी देखा जा रहा है। अब अखिरकार हम लोग लिंग समानता की बात कर सकते हैं, जिससे वास्तव में समानता आएगी। लिंग समानता का मतलब यह नहीं है कि वह एक लिंग को ध्यान में रखकर सारे कानून बनाए, यह सिर्फ महिलाओं की बात नहीं है। पुरुष और महिलाओं को समान रूप से सुरक्षा मिलनी चाहिए।’’

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Web Title-Boys sexual harassment more than girls
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