नई दिल्ली। महाराष्ट्र में रातोंरात राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता अजित पवार से डील कर भाजपा की सरकार तो बन गई, मगर शक्ति-परीक्षण (फ्लोर टेस्ट) से पहले ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार मैदान छोडक़र चले गए। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन्हें बुधवार को शाम पांच बजे बहुमत साबित करने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने असमर्थता जताते हुए इस्तीफा दे दिया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इससे न भाजपा का ऑपरेशन कमल सफल हुआ और न ही अजित पवार का विधायकों को लाने का दावा। बहुमत का जुगाड़ न होता देख आखिरकार फडणवीस ने मंगलवार की शाम साढ़े तीन बजे प्रेस वार्ता कर इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। फडणवीस से दो घंटे पहले अजित पवार ने इस्तीफा दिया। कुल मिलाकर अजित पवार 78 और देवेंद्र फडणवीस 80 घंटे ही मुख्यमंत्री रह पाए।
शनिवार की सुबह आठ बजे अचानक जब अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली थी तो इसे भाजपा खेमे की ओर से बड़ा मास्टर स्ट्रोक के रूप में प्रचारित किया गया। सोशल मीडिया पर भी भाजपा समर्थकों की ओर से इस महाउलटफेर नाम देकर तारीफों के पुल बांधे गए। मगर, जैसे ही शरद पवार ने ट्वीट कर सरकार में शामिल होने को अजित पवार का निजी फैसला बताकर राकांपा को इससे अलग कर लिया, उसके बाद से सियासी घटनाक्रम हर घंटे-दो घंटे पर बदलने लगा।
पहले माना जा रहा था कि सरकार बनाने में शरद पवार की भी मौन सहमति है, मगर उन्होंने जिस तरह से शिवसेना और कांग्रेस के साथ लगातार तालमेल बनाए रखा और सोमवार की शाम सात बजे से पांच सितारा होटल में 162 विधायकों की सार्वजनिक परेड करवाई और उन्हें अपने रुख पर कायम रहने का संकल्प दिलाया, उससे ये आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं।
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