हालांकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील का कहना है कि कोई पत्र नहीं भेजा गया।
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने पर्सनल कैपेसिटी
से कुछ भेजा हो। एक बार सुनवाई शुरू होने के बाद मध्यस्थता पैनल भंग कर
दिया गया था।
मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड 6
मुस्लिम पक्षों में से महज एक पक्ष है और इसने सहमति और अथॉरिटी के बगैर
पत्र लिखा है। यह आधारहीन है। दूसरी ओर, निर्वाणी अखाड़ा मामले का पक्षकार
नहीं है। उसके जिम्मे हनुमानगढ़ी मंदिर का प्रभार है। बोर्ड के वकील ने कहा
है कि हो सकता है अखाड़े ने एक अराधक के रूप में हस्तक्षेप याचिका दायर की
हो लेकिन इसे आधिकारिक पक्षकार नहीं माना जा सकता।
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