परासरन ने शीर्ष अदालत से कहा, इस तरह की मूर्ति या तस्वीर जिसकी न्यायिक
इकाई के तौर पर मान्यता है, भगवान को समर्पित संपत्ति को पास रखने में
सक्षम है। हालांकि मूर्ति स्वयं पूजा की वस्तु नहीं है, बल्कि मूर्ति में
बसने वाले भगवान को पूजा जाता है। उन्होंने बिना मूर्ति वाले उन मंदिरों का
भी उदाहरण दिया, जिसका जिक्र मुस्लिम पक्ष ने किया था।
उन्होंने जोर देकर
कहा कि हिंदू कानून उदाहरणों से न्यायिक व्याख्या के तरीकों से विकसित है
और हिंदू धर्म में सार्वजनिक पूजा की जगहें विविधता भरी हैं और इन जगहों पर
बिना मूर्ति/तस्वीर की पूजा की जा सकती है। मुस्लिम पक्ष केंद्रीय गुंबद
के अधीन भूमि को न्यायिक इकाई के तौर पर पेश कर रहा है। परासरन ने कोर्ट के
समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा, हिंदू मंदिर या हिंदू मूर्ति की अवधारणा को
एक स्ट्रेट जैकेट में पेश करना संभव नहीं है।
समानता हालांकि यह है कि
पूजा करने का उद्देश्य एक है। अंतर भगवान के पूजा करने के तरीकों में है,
जो कि भगवान/देवता के स्वरूप पर निर्भर करता है। हिंदू मिट्टी, सोने या
किसी अन्य पदार्थ की बनी मूर्ति के भौतिक शरीर की पूजा नहीं करते, बल्कि वे
भगवान के सांकेतिक स्वरूप की आंतरिक आत्मा की पूजा करते हैं।
(IANS)
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