नई दिल्ली। क्या किसी की जन्मस्थली के जमीन के टुकड़े का न्यायिक अस्तित्व हो सकता है, जो कानून का विषय है? इस सवाल ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले के अंतिम चरण में काफी महत्ता हासिल की है। हिंदू पक्ष मानता है कि भगवान राम का जन्म बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद के सामने की जमीन (आंतरिक प्रांगण) में हुआ था। इस मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को ढहा दिया गया था।
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विवाद में शामिल मुस्लिम पक्षों का कहना है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है, लेकिन मस्जिद का आंतरिक प्रांगण उनकी जन्मस्थली नहीं है। रामलला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरण ने शीर्ष अदालत के समक्ष बहस करते हुए कहा कि एक न्यायिक व्यक्ति के रूप में भूमि को पहचाने जाने की संकल्पना को हिंदू कानून के नजरिए से देखा जाना चाहिए और यह जरूरी है कि इस कानून को रोमन कानून या अंग्रेजी कानून के रूप में बदला जाए।
93 वर्षीय वकील ने बहस करते हुए कहा कि भगवान खुद कानून के तहत एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि इसे जिस भी स्वरूप में माना जाता है, वह इसे कानून में खुद ही एक व्यक्ति के रूप में व्यक्त करता है। ऐसे मंदिर के मामले में जहां कोई मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है, उसे धार्मिक प्रतिष्ठान के रूप में नहीं माना जाता है।
जो श्रद्धालु ऐसे प्रतिष्ठान में पूजा करते हैं उसे उन लोगों से भिन्न नहीं माना जा सकता जो मूर्ति या तस्वीर वाले मंदिर में पूजा करते हैं। परासरन ने अदालत से कहा कि भारत एक बहुलतावादी समाज है और ऐसे में, धर्म क्या है और धार्मिक मान्यता के मामले क्या हैं या कैसे धार्मिक क्रियाकलाप किए जाएं, से संबंधित वैश्विक स्तर पर कोई सटीक परिभाषा नहीं है।
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