नई दिल्ली। दिल्ली की सत्ता में जोरदार वापसी कर अरविंद केजरीवाल ने दिखा दिया है कि भारतीय राजनीति में वे महज संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग के दम पर खुद को स्थापित करने में सफल रहे हैं। यह केजरीवाल मॉडल ही है, जिसने देश के दूसरे राज्यों में भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों की सरकारों की न केवल नींद उड़ा दी है, बल्कि उस मॉडल को अपनाने पर विचार करने के लिए भी मजबूर कर दिया है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
देश में उभरे नए किस्म के इस मॉडल से दूसरी राज्य सरकारों को मोहब्बत होती दिख रही तो इसे लागू करने की जटिलताओं से डर भी है। यह मॉडल है बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन आदि सेवाओं में रियायतों के जरिए जनता को इंस्टैंट रिलीफ यानी तात्कालिक राहत देने वाला। सिर्फ काम से ही चुनाव नहीं जीते जाते। यह थ्योरी गढऩे वाले राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी दिल्ली चुनाव के नतीजे आंखें खोल देने वाले रहे।
अपनी हालिया कुछ महीनों की योजनाओं के दम पर दिल्ली का दिल जीतकर केजरीवाल ने दिखा दिया कि काम से ही चुनाव जीते जा सकते हैं। हालांकि, इन योजनाओं से सरकारी खजाने पर पडऩे वाले बोझ पर भी बहस चल निकली है। यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या रियायतों का पिटारा लंबे समय तक खोले रखने में सरकारें सफल होंगी या फिर चुनाव के समय ही दांव चले जाएंगे। दिल्ली से निकले केजरीवाल मॉडल को लेकर अब दूसरी सरकारें भी गंभीर हुई हैं।
मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सरकारों को ही लीजिए। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार दिल्ली की तर्ज पर 75 यूनिट मुफ्त बिजली देने का जहां ऐलान कर चुकी है। चंद रोज पहले ही महाराष्ट्र सरकार के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने कह दिया कि उनकी सरकार भी 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की योजना पर काम कर रही है। इसके लिए अफसरों से तीन महीने में रिपोर्ट मांगी है।
राज्य सरकारों के दिल्ली मॉडल को अपनाने पर केजरीवाल भी खुश दिखते हैं। केजरीवाल महाराष्ट्र सरकार के कदम पर ट्वीट कर कहते हैं, मैं खुश हूं कि देश की राजनीति में सस्ती बिजली भी बहस का मुद्दा बन चुका है। दिल्ली ने देश को मुफ्त और सस्ती बिजली उपलब्ध कराने का रास्ता दिखाया है। दिल्ली ने यह भी दिखा दिया कि इससे वोट भी मिल सकते हैं। 21वीं सदी के भारत में 24 घंटे सस्ती दर पर बिजली मिलनी चाहिए।
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