नई दिल्ली। लेटरल एंट्री पर मचे सियासी बवाल के बीच कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कांग्रेस सरकार में मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे लोगों को प्रशासनिक भूमिकाओं में शामिल किया गया था।
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उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि लेटरल एंट्री के जरिये आरएसएस कैडर को सिविल सेवाओं में शामिल करने की एक चाल है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी लेटरल एंट्री का हिस्सा थे। डॉ. मनमोहन सिंह को 1976 में सीधे वित्त सचिव कैसे बनाया गया था? योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी लेटरल एंट्री का हिस्सा थे।
"जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए, तो उन्होंने पूछा कि क्या इसके लिए कोई व्यवस्था है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया गया और सोनिया गांधी को इसका अध्यक्ष बनाया गया। क्या यह कोई संवैधानिक पद है? आपने उन्हें प्रधानमंत्री से ऊपर रखा। लेटरल एंट्री की शुरुआत आपने की थी। पीएम मोदी ने इसे औपचारिक रूप से स्थापित किया। 2005 में प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट जारी की गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। आप 2004 से 2014 तक सत्ता में थे और कुछ नहीं किया। पीएम मोदी ने व्यवस्था को व्यवस्थित किया। उन्होंने कहा कि यूपीएससी उचित प्रक्रियाओं के माध्यम से भर्ती को संभालेगा।"
उन्होंने कहा कि, "ये संयुक्त सचिव, निदेशक या उप सचिव जैसे अनुबंध आधारित पद हैं, जहां उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होना चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी पर्यावरणीय मुद्दे को प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले किसी व्यक्ति द्वारा प्रबंधित किया जाना चाहिए। यह एक खुली प्रक्रिया है, जहां कोई भी आवेदन कर सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में पेशेवरों को लेटरल एंट्री के माध्यम से शामिल किया जाता है और एससी-एसटी, ओबीसी उम्मीदवार भी इसके माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। वहीं यूपीएससी की रिक्तियां अलग रहती हैं। विपक्ष का अचानक ओबीसी प्रेम उमड़ा है। ये लोग आरक्षण पर खतरे का अफवाह फैलाने में जुटे हुए हैं। वे एससी-एसटी और ओबीसी छात्रों को गुमराह कर रहे हैं।"
बता दें कि विभिन्न मंत्रालयों में सचिव और उपसचिव की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के जरिए होती है। यह देश की सर्वाधिक कठिन परीक्षाओं में से एक है। प्रतिवर्ष इसमें लाखों अभ्यर्थी हिस्सा लेते हैं, लेकिन कुछ को ही सफलता मिल पाती है।
वहीं, केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री की व्यवस्था करने का फैसला किया है। इसके अंतर्गत बिना यूपीएससी एग्जाम दिए अभ्यर्थी इन पदों पर दावेदारी ठोक सकते हैं। इसी को लेकर राजनीतिक संग्राम मचा हुआ है। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के लोगों के हितों पर कुठाराघात होगा। ऐसे में इस व्यवस्था को जमीन पर उतारने से बचना चाहिए।
साल 2018 में केंद्र सरकार ने इस व्यवस्था को लागू करने का फैसला किया था। जिसके अंतर्गत कोई भी अभ्यर्थी मंत्रालयों में सचिव और उप सचिव जैसे पदों को पा सकता है।
--आईएएनएस
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