नई दिल्ली। अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढांचे का कोई धार्मिक महत्व नहीं है जबकि भगवान
राम का जन्मस्थान ऐसी जगह है जिसके साथ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था जुड़ी
हुई है, इसलिए राम के जन्मस्थान को विस्थापित नहीं किया जा सकता है। यह बात रामलला विराजमान की ओर से अधिवक्ता ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में कही। रामलला विराजमान की तरफ से दलील पेश करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरण ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि जन्मस्थान को किसी अन्य जगह विस्थापित नहीं किया जा सकता है, जबकि मुसलमान अवाम के लिए इस मस्जिद का कोई विशेष महत्व नहीं है क्योंकि इससे अन्य मस्जिदों में नमाज अदा करने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने कहा कि अयोध्या में कई दूसरी मस्जिदें हैं और उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस स्थल का हिंदुओं के लिए खास धार्मिक महत्व है और इसे विस्थापित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए तीर्थयात्रा एक धार्मिक परंपरा है मगर, मुसलमानों के लिए सिर्फ मक्का और मदीना तीर्थस्थल है और अयोध्या या बाबरी मस्जिद उनके लिए ऐसा कोई तीर्थस्थल नहीं है। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ में न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर भी शामिल थे। परासरण ने पीठ के समक्ष अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की याचिका अनुरक्षणीय नहीं है। मामले में संविधान पीठ ने फैसला देते हुए कहा था कि मस्जिद नमाज अदा करने की धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
याचिकाकर्ता एम. सिद्दीकी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इससे पहले शीर्ष अदालत की पीठ को बताया कि उक्त आदेश संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक परंपरा की संकल्पना से पूरी तरह वंचित है। शीर्ष अदालत मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। सर्वोच्च अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए ग्रीष्मावकाश के बाद छह जुलाई की तारीख निर्धारित की है।
-आईएएनएस
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