नई दिल्ली । झेलम के तेज़
बहते पानी की तरह कश्मीर को लेकर भी कई उतार-चढ़ाव आए। इसी मुद्दे पर आधारित मई
1954 में, बिनॉय मुखोपाध्याय (जाजाबोर) द्वारा मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई एक
राजनीतिक-ऐतिहासिक कथा ‘झेलम नोदिर तीरे’ का अंग्रेजी में किया गया अनुवाद ‘कॉइट फ्लोज द रिवर झेलम’बेहद शानदार और दिल को छू
लेने वाला है।
नियोगी बुक्स द्वारा
प्रकाशित यह अनुवाद सुजित कुमार दास ने किया है, जो पश्चिमी बंगाल में प्रशासनिक
अधिकारी (ज्वाइंट कमिश्नर रेवेन्यू) के पद पर कार्यरत हैं। इस किताब में दर्शाया
गया है कि जब कश्मीर एक अलग शाही रियासत था और महाराजा हरि सिंह ने किन हालातों
में भारत में शामिल होने का निर्णय लिया था। पाकिस्तान ने किस तरह आक्रमण किया,
क्रूरता की सभी हदों को पार करते हुए कश्मीरियों पर अत्याचार किए और कश्मीर की
सेना ने किस तरह उनका सामना किया। तत्पश्चात अक्षम होने की वजह से महाराजा हरि
सिंह ने 25 अक्टूबर 1947 को भारत से मदद की माँग की।
उस समय की राजनीति एवं
इतिहास में लॉर्ड माउंटबेटन, पंडित नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मोहम्मद अली
जिन्नाह व महाराजा हिर सिंह के योगदान का वर्णन है। युद्ध से संबंधित घटनाक्रम एवं
सामाजिक मुद्दों की विस्तृत जानकारी है। कश्मीर के साहसी योद्धाओं की वीरता पर
प्रकाश डाला गया है। इनमें लेफ़्टिनेंट कर्नल रंजीत राय, ब्रिगेडियर एल.पी.
सेन,ब्रिगेडियर उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम उल्लेखनीय है। पाकिस्तान के
हमले को रोकने के लिए भारतीय सेना और वायु सेना के योगदान को बखूबी दर्शाया गया
है।
यह किताब वापस आपको उस दौर
में जहाँ राजनीतिक षड्यंत्रों के पीछे छिपे स्वार्थमय क़िस्से आपको चौंका देते
हैं। युद्ध की रणनीतियाँ दोस्ती व दुश्मनी की नोंक पर बनाई जाती हैं। लेखक द्वारा
किया गया उन तमाम घटनाक्रमों का ज़िक्र सिर्फ़ राजनीतिक-ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण
नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं के नज़रिए भी प्रभावी है।
नियोगी बुक्स द्वारा
प्रकाशित पुस्तकों में न केवल सचित्र पुस्तकें बल्कि अनुवादित, काल्पनिक एवं ग़ैर
काल्पनिकपुस्तकों ने भी ख़ास जगह बनाई है। वर्ष 2004 में शुरू की गई इस पुस्तक प्रकाशन की श्रृंखला में सैकड़ों
पुस्तकें शामिल हैं, जो कम क़ीमत एवं गुणवत्ता के मानकों पर सर्वोत्तम हैं एवं
पाठकों तक उनकी व्यापक पहुँच है।
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