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तीन तलाक के 7 साल, जब मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को दी थी जीने की आजादी

7 years of triple talaq, when Modi government gave Muslim women the freedom to live - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । तीन तलाक ने न जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं की जिदंगी को नर्क बना डाला था और न जाने इसने कितने गहरे जख्म दिए। यह मुसलमानों से जुड़ी एक विवादित प्रथा थी, जिसमें पुरुष के महिला को महज तीन बार तलाक कह देने भर से शादी खत्म मानी जाती थी।
इसकी पीड़ित हर जगह है और हर तबके की मुस्लिम महिलाएं रहीं। चाहे वो दहेज के लिए सताई गई मुंबई की शबनाम आदिल खान हो या बेटा नहीं होने की वजह से उत्तर प्रदेश के अमरोहा की नेशनल लेवल की नेटबॉल प्लेयर शुमेला जावेद हो, गाजियाबाद की दो सगी बहनों को उनके शौहर ने फोन और फिर खत लिखकर ट्रिपल तलाक दे दिया था।

कई ऐसे भी मामले हैं, जहां पर पुरुषों ने महिलाओं को पितृसत्तात्मक सोच के कारण उन्हें छोड़ दिया और उन महिलाओं को तलाक का दंश झेलना पड़ा। देश में ऐसी कई मुस्लिम महिलाएं थीं जो किसी न किसी वजह से तीन तलाक की तकलीफ झेल रही थीं।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इस तकलीफ को महसूस किया। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसी कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए कानून बनाने की पहल की, ऐसी पहल जिसका पूरे देश की मुस्लिम महिलाओं ने खुलकर समर्थन भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2017 को स्वतंत्रता दिवस पर ऐतिहासिक लालकिले की प्राचीर से भी 'तीन तलाक' का मुद्दा उठाया था। उन्होंने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा था कि मैं चाहता हूं कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति मिले।

'22 अगस्त 2017' मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐतिहासिक दिन बन गया। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिलाओं को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाई और ट्रिपल तलाक की प्रथा को खत्म कर दिया। आजाद देश में साधिकार जीने की खुशी क्या होती है इसका एहसास मुस्लिम महिलाओं को कराया। सर्वोच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक शानदार कदम साबित हुआ।

साल 2016 में उतराखंड की सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था बैन करने की मांग करते हुए याचिका दायर की। सायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून-1937 की धारा-2 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। सायरा बानो की याचिका पर ही 22 अगस्त 2017 में सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला सुनाकर ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया था।

पांच जजों की बेंच ने 3-2 के बहुमत के साथ ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। बेंच में शामिल सभी जज अलग-अलग धर्म से थे। चीफ जस्टिस खेहर जो सिख हैं, उन्होंने बेंच को लीड किया था, यूयू. ललित, जस्टिस कुरियन, आरएफ नरीमन और अब्दुल नजीर इसमें शामिल थे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश देते हुए इस दिशा में 6 महीने के भीतर कानून लाने के लिए भी कहा था।

ट्रिपल तलाक बिल के विरोध में कई विपक्षी पार्टियों ने आपत्ति जताई थी और इस पर राजनीतिक रोटियां सेकने की कोशिश भी की। जिसकी वजह से मुस्लिम महिलाओं को सदियों पुरानी इस कुप्रथा से आजादी मिलने में थोड़ा इंतजार करना पड़ा। आखिरकार 30 जुलाई को तत्कालीन कानून मंत्री रविशकंर प्रसाद ने राज्यसभा में ट्रिपल तलाक बिल पेश किया और तीसरी कोशिश में मोदी सरकार को जीत मिली। राज्यसभा में ट्रिपल तलाक के पक्ष में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े थे।

--आईएएनएस

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Web Title-7 years of triple talaq, when Modi government gave Muslim women the freedom to live
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