रपट में कहा गया है कि नोटबंदी का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य लेन-देन में नकदी
का इस्तेमाल घटाना और लोगों को भुगतान के लिए गैर-नकदी माध्यमों के
इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना था, लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय
अर्थव्यवस्था में नकदी का उपयोग घट नहीं रहा है।
लोकलसर्कल ने कहा कि जहां
28 प्रतिशत लोग महसूस करते हैं कि नोटबंदी का कोई नकारात्मक असर नहीं है,
वहीं दूसरी ओर पिछले तीन सालों में जब्त नकली मुद्रा की मात्रा नोटबंदी से
पहले की तुलना में काफी बढ़ गई है। सर्वे में यह भी कहा गया है कि नोटबंदी
के तीन साल बाद करदाताओं की संख्या बढऩा शीर्ष सकारात्मक असर है, और आर्थिक
सुस्ती व असंठित क्षेत्रों में आय खत्म होना शीर्ष नकारात्मक असर हैं।
सर्वे में कहा गया है कि नकदी को लेन-देन के प्राथमिक माध्यम के रूप में
इस्तेमाल करने वाले नागरिकों का प्रतिशत एक साल में 30 प्रतिशत से अधिक घटा
है और नागरिकों ने कहा कि पिछले वर्ष संपत्ति खरीदने में नकदी का इस्तेमाल
बढ़ा है। काले धन पर रोक लगाने के लिए 500 और 1000 रुपए के नोटों को
अमान्य घोषित किए जाने और उसके बाद 500 व 2000 रुपए के नए नोट जारी किए
जाने की घटना के तीन साल बीत चुके हैं।
(IANS)
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