नई दिल्ली । भारत में 1971 के
चुनावों के बाद से महिला मतदाताओं में 235.72 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
देश में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक हो गई है और 2019 के आम चुनाव
में उनकी भागीदारी 67 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है।
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह जानकारी भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्रा ने दी।
उन्होंने
कहा, भारत ने 1971 के चुनावों के बाद से महिला मतदाताओं में 235.72
प्रतिशत की वृद्धि देखी है और आजादी के बाद से सात दशकों और 17 आम चुनावों
के बाद, भारत में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में अधिक हो गई है
और 2019 के आम चुनाव में यह 67 प्रतिशत से अधिक हो गई है।
यहां
शुक्रवार को महिलाओं, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों की चुनावी भागीदारी
में वृद्धि विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए चंद्रा
ने यह बात कही, जिसमें 24 देशों के लगभग सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
उन्होंने
कहा, लैंगिक अंतर, एक महत्वपूर्ण मानदंड है, जो 1962 में शून्य से 16.71
प्रतिशत नीचे था, न केवल बंद हुआ है, बल्कि 2019 में 0.17 प्रतिशत से अधिक
हो गया है। भारत में 1971 के चुनावों के बाद से महिला मतदाताओं में बड़ी
वृद्धि देखी गई है।
चंद्रा ने इस बात भी प्रकाश डाला कि कैसे चुनाव
आयोग ने महिलाओं, दिव्यांगों, वरिष्ठ नागरिकों और ट्रांसजेंडर लोगों की
भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर
देशों और क्षेत्रों में महिलाओं को टुकड़ों में वोट देने का अधिकार मिला।
उन्होंने उल्लेख किया कि महिलाओं को समान मताधिकार देने में अमेरिका को 144
साल लग गए। भारत में आजादी के साल से ही महिलाओं को मत देने का अधिकार
हासिल था।
उन्होंने कहा, हालांकि इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती
कि कई भारतीय महिलाओं ने मतदान के समान अधिकार के लिए अभियान चलाया।
उन्होंने कहा कि भारतीय मताधिकार आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में अधिक से
अधिक महिलाओं की भागीदारी के साथ गति पकड़ी।
उन्होंने याद किया कि
जमीनी स्तर पर महिलाओं को मतदान का अधिकार देते समय वास्तविक चुनौती पेश
आई, जब बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपना नाम बताने से इनकार कर दिया और
फलाने की पत्नी या फलाने की मां के तौर पर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज
कराना चाहती थीं।
उन्होंने बताया कि निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी
करना पड़ा कि नाम पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा है और महिला मतदाताओं को
अपने नाम का पंजीकरण कराना चाहिए। सार्वजनिक अपीलें की गईं और महिला
मतदाताओं को पंजीकरण कराने में सक्षम बनाने के लिए अभियान को एक महीने का
विस्तार दिया गया।
अपने संबोधन के दौरान, सुशील चंद्रा ने विशेष रूप
से 80 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों और कोविड-प्रभावित मतदाताओं के
लिए उनके घरके दरवाजे पर ही मतदान सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 2020 में
ईसीआई द्वारा शुरू की गई पहल के बारे में भी बताया।
उन्होंने बताया
कि पिछले पांच राज्य विधानसभा चुनावों में, 4.5 गुना अधिक मतदाताओं ने डाक
मतपत्रों के माध्यम से चुनावी प्रक्रिया में भाग लिया और आउटरीच और सुविधा
के प्रयासों को व्यापक बनाने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि आज के समय में
देश में लगभग 1.5 करोड़ 80 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता हैं।
--आईएएनएस
क्या मतदान से पहले कुमारी शैलजा को मिल गया सोनिया गांधी का भरोसा, अब हुड्डा का क्या होगा?
उत्तर प्रदेश में अपराधी बेलगाम, सरकार की शह पर निर्दोष लोगों पर हो रही कार्रवाई : अखिलेश यादव
भाजपा इल्जाम लगाने में माहिर, सावरकर ने अंग्रेजों से मांगी थी माफी : तारिक अनवर
Daily Horoscope