नई दिल्ली । भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं काफी गंभीर हैं। भारत में लगभग 150 मिलियन लोगों को उपचार की आवश्यकता है। लेकिन, बहुत कम लोगों को ही उपचार मिल पाता है।
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ग्रामीण इलाकों में 45 फीसदी लोग चिंताओं से जूझ रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि गांवों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े एक्सपर्ट की कमी है। जिसके कारण एक बड़ी आबादी को समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने डिजिटल स्वास्थ्य सेवा और समुदाय-आधारित कैंपेन के तहत ग्रामीण भारत के लोगों में अवसाद, चिंता और आत्म-क्षति के जोखिम को कम करने की क्षमता दिखाई है।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट इंडिया में अनुसंधान निदेशक और कार्यक्रम निदेशक (मानसिक स्वास्थ्य) प्रोफेसर पल्लब मौलिक ने कहा कि हमारे शोधकर्ताओं द्वारा किया गया शोध मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन विश्व स्तर पर अपनी तरह का सबसे बड़ा अध्ययन है। बीते एक वर्ष में अवसाद के जोखिम में पर्याप्त कमी का इससे खुलासा हुआ है। इस अध्ययन के लिए आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी और हरियाणा के फरीदाबाद और पलवल जिलों से 9,900 लोग शामिल थे। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में चिकित्सा मूल्यांकन, रेफरल और उपचार (स्मार्ट), ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किया गया।
टीम में शामिल लोगों ने गांवों में 12 महीने तक दो मुख्य बिंदुओं पर काम किया। पहले पार्ट में गांव के लोगों के साथ मिलकर क्म्युनिटी कैंपेन के तहत कैसे मानसिक तनाव को दूर कर सकते हैं, वहीं दूसरे बिंदु में डिजिटल हेल्थकेयर की पहल से गंभीर रूप से मानसिक तनाव से ग्रस्त लोगों को बचाया जा सकता है।
जेएएमए साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला है कि एक वर्ष में लोगों में अवसाद के जोखिम में उल्लेखनीय कमी आई।
नया निष्कर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन और लैंसेट आयोग द्वारा दुनिया भर में मानसिक विकारों के प्रभाव को कम करने के लिए नई रणनीतियों के आह्वान का समर्थन करता है। ये रणनीतियां स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कुछ समायोजन के साथ निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों तथा उच्च आय वाले देशों के निर्धन क्षेत्रों में काम कर सकती हैं।
--आईएएनएस
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