उन्होंने कहा कि निजी अंग्रेजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों और
विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों की स्थिति भला कौन नहीं जानता। लेकिन
उच्च शिक्षा और आईएएस/आईपीएस जैसी परीक्षाओं में हिंदी माध्यम के छात्रों
को जब अचानक अंग्रेजी स्कूल से पढ़े-लिखे छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी
पड़ती है तब वे उसमें पिछड़ जाते हैं।
डॉ. झा ने कहा कि आज जिस तरह से सभी
सरकारी नौकरियों व प्रतियोगिता परीक्षाओं में परोक्ष रूप से अंग्रेजी को
अनिवार्य बनाया जा रहा है वह निश्चित तौर पर हिंदी माध्यम के छात्रों को
अलग-थलग करने की कोशिश है जिस पर सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सफलता में भाषा ज्ञान बाधक नहीं होना चाहिए। सिविल सेवा
परीक्षा के लिए दिल्ली की विजडम आईएएस अकेडमी नामक संस्थान के डायरेक्टर
अजय अनुराग का मानना है कि इधर कुछ वर्षों से यूपीएससी परीक्षा के बदलते
पैटर्न और इंटरव्यू में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों को अपेक्षाकृत कम अंक
देना कही-न-कहीं उनके खराब परिणाम के कारण कहे जा सकते हैं।
सवाल है कि
आखिर वर्ष 2011 के पहले हिंदी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने
वाले अभ्यर्थियों का परिणाम बेहतर क्यों था और अब ऐसे बदलाव क्यों किए गए
हैं जिससे वे पिछड़ते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि हिंदी माध्यम में आईएएस
की तैयारी करने वाले छात्रों की काफी संख्या है जो गिरते परीक्षा परिणाम के
कारण आजकल बेहद निराश चल रहे हैं। देश की वर्तमान सरकार भी हिंदी समर्थक
होने का दावा तो करती है लेकिन इस दिशा में वह कोई उचित कदम नहीं उठा रही
है।
(IANS)
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