महादेवी वर्मा ने नारी शिक्षा को पुरुष शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा था कि स्त्री को शिक्षित बनाना एक पुरुष को शिक्षित बनाने से ज्यादा आवश्यक और महत्वपूर्ण है। यदि एक पुरुष शिक्षित -प्रशिक्षित होता है तो उससे एक ही व्यक्ति को लाभ होता है किंतु यदि स्त्री शिक्षित होती है तो उससे संपूर्ण परिवार एवं आने वाली पीढ़ी शिक्षित हो जाती है। उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बात कही नारी को अशिक्षित रखना समाज के लिए अपराध के समान है।
बालिकाओं और स्त्रियों को केवल दया का पात्र समझकर उन्हें घर की चारदीवारी में ना रखेंl अब समय आ गया है कि बालिकाओं को प्रारंभ से और स्त्रियों को उचित मार्गदर्शन, प्रोत्साहन देकर परिवार समाज और राष्ट्रीय सहभागिता की मुख्यधारा में उत्तरोत्तर सहभागी बनाना चाहिएl आज स्त्री के संदर्भ में सारी पुरातन अवधारणाओं को बदलने का समय आ गया है। नारी अब घर में पूज्या तो है ही साथ ही वह समाज में अपनी अहमियत की दस्तक देकर देश की सीमा सुरक्षा में भी अपना योगदान दे रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राष्ट्र निर्माण में नारी की शिक्षा एवं उनकी सहभागिता भारत का शक्तिशाली भविष्य है, अतः नारी की शिक्षा देश के लिए अति महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई हैl वह समय चला गया जब किसी घर में कन्या के पैदा होने से पूरे परिवार में मातम छा जाता था अब भारत में धीरे-धीरे सामाजिक परिवेश में लिंग भेद बदलने लगा है स्थिति यह है कि शिक्षित परिवार केवल एक संतान ही पैदा करना चाहती है चाहे वह कन्या हो या बेटा। अब परिवार में कन्या पैदा होने से खुशियां मनाई जाती है और पुरातन सोच अब धीरे-धीरे सामाजिक परिवेश को मस्तिष्क के मूल्यांकन के साथ बदलते जा रही है।
पुरुष प्रधान समाज में नारी को पूज्या कह कर बहला दिया जाता था और उसे घर की चारदीवारी में सीमित कर दिया गया था। यही कारण था कि वे पुरुषों की बराबरी में ना आकर बहुत पिछड़ गई और देश की समग्र विकास की स्थिति एकांगी हो गई थी। समाज यह भूल गया था कि जिन हाथों में कोमल चूड़ियां पहनी जाती हैं वही हाथ तलवार भी उठा कर युद्ध में एक वीरांगना की भूमिका निभाती है, इसकी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण रजिया बेगम और रानी लक्ष्मीबाई रही हैं।
मनुस्मृति पर यदि आप नजर डालेंगे तो पाएंगे कि उसमें स्पष्ट कहा गया है कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का काफी प्रचार प्रसार किया गया था इसके कई प्रमाण भी हैं कि वेद की रिचाओं का ज्ञान नारियों को था। इसमें कुछ महत्वपूर्ण नारियां समाज के लिए एक उदाहरण बन गई थी उनमें मैत्री, गार्गी, अनुसूया, सावित्री, आदि उल्लेखनीय हैं।
वैदिक काल के विद्वान मुंडन मिश्र की पत्नी उदय भारती ने प्रकांड पंडित विश्व विजयी आदि शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ में भरी सभा में पराजित किया था। इसीलिए वेदों और पुराणों में भी उल्लेखित है की बालिका शिक्षा समाज के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला होता है। नारी के उत्थान में कई कुप्रथा कुठाराघात करती रही हैं, जो नारी के विकास में बाधा बनकर सामने आई थी इनमें बाल विवाह सबसे बड़ा अवरोध बना था और इसी का प्रतिफल है कि नारी पुरुष के समाज में काफी पिछड़ गई थी।
समय के परिवर्तन के साथ साथ नारी का महत्व अब सम्पूर्ण तौर पर समझा जा रहा है आज समाज तथा देश में नारियां सर्वोत्कृष्ट कार्य कर रही है। समाज हो या विज्ञान या राजनीति अथवा समाज सेवा संपूर्ण क्षेत्र में आज नारियां पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर सर्वश्रेष्ठ कार्य कर रही है। मैडम क्यूरी, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, भंडार नायके, सरोजनी नायडू, कस्तूरबा गांधी जैसी महिलाएं राष्ट्र का मार्गदर्शन करने का काम करती रही है। महात्मा गांधी ने स्वयं कहा है कि जब तक भारत की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम नहीं करेगी तब तक भारत का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है।
गोल्ड मेडल लाकर साक्षी मलिक बहनो, फोगाट बहनों ने विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया है। पी वी संधू, वित्त मंत्री सीतारमण मंत्रिमंडल में शामिल महिलाएं किसी से पीछे नहीं हैं। और सबसे ताजा उदाहरण भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिला होकर महिलाओं का नाम राष्ट्र की प्रथम पंक्ति में दर्ज कर देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया है। उन्होंने भारत के लिए एक स्वर्णिम इतिहास भी बनाया है। अब भारत में नारियों की स्थिति प्रथम पंक्ति में मानी जाती है। ऐसे में भारत में नारी शिक्षा, उनकी सहभागिता तथा उनकी आत्म निर्भरता भारत के भविष्य की शक्तिशाली ऊर्जा एवं संपत्ति ही होगी।
भारत की नारियों को नमन, प्रणाम एवं अभिनंदन।
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