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जीवन चिंतन : अकर्मण्यता से उपजा पलायनवादी यथार्थ, संघर्ष से होता है ऊंचा मनोबल

Thinking about life: Escapist reality arises from indolence, struggle leads to higher morale - Raipur News in Hindi

कर्मण्यता एक बड़ी शारीरिक, मानसिक व्याधि और दशा है, यह जीवन को निर्रथक बनाती है। इस अवस्था को तत्काल त्यागना चाहिए,और अपने जीवन के संघर्ष के लिए तैयार रखना चाहिए। मन ही मन यदि आपने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। वैसे जीवन में दुष्कर, कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए जिससे पूरी शक्ति एवं उर्जा लगाकर हम उसे प्राप्त कर सकेl कठिन कार्य से घबराकर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता हैl निराशा से बढ़कर कोई अवरोध नहीं अतः निराशा, हताशा को त्यागें और ऊर्जा उत्साह के साथ आगे बढ़े, सफलता आपके कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हटकर खड़ा दिखाई देता हैl जिसे हम विलक्षण मानते और प्रतिभा संपन्न मानते हैं और आज के संदर्भ में हम उसे सेलिब्रिटी कहते हैं तो निसंदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छुपा होता हैl बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या शॉर्टकट नहीं होता है।
विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता एवं संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं।यूं तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताओं और आकांक्षाएं होती हैंl सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ सामाजिकता, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैंl मानव की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति के संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है किंतु व्यक्ति की इच्छा,आकांक्षा सफलता उस उसके मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिएl
यदि व्यक्ति की आकांक्षा, सफलता और इच्छा उसकी अदम्य इच्छा, भूख और मूल्यों को समाविष्ट ना करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती हैl जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवी संविधान मूल्यों से ओत-प्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बनाकर जैविक व रासायनिक हथियार बनाकर व्यापक नरसंहार जैसे अमानवीय अविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता हैl यही वजह है की सफलता का नक्शा और इच्छा के पीछे माननीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी हैl
मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य और उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिएlइसमें कोई संदेह नहीं की विश्वभर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य, करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती है और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रखकर तय की जाती हैl
भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही हैl ऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र तथा माननीय आदर्श चला गया वह व्यक्ति, मृतक लाश की तरह हो जाता है। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है जिनमें कबीर, रैदास, संत, ज्ञानेश्वर तुकाराम, मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम, खुसरो, गांधी, नेहरू, टैगोर, सुभाष, विवेकानंद जैसे महान लोग सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को अपने जीवन की सफलता मानकर अपने जीवन को समाज को सौंप दिया था। परिणामस्वरूप व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी ना बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबंध होने का प्रयास करना चाहिए। ताकि तनिक सफलता के स्थान पर चिरस्थाई एवं समाज उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके।
वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद तथा सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख एवं लालच चिरस्थाई सफलता के सामने महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक हो जाता है। आज मनुष्य तत्काल एवं अस्थाई सफलता के पीछे मानवीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है जो अत्यंत अस्थाई एवं पानी के बुलबुले की तरह है। और इससे न तो कोई इतिहास बनता है और ना ही कोई प्रतिमान ही स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थाई नहीं होती है।
राजनीति तथा प्रशासन में मूल्यों सिद्धांतों की तो ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। क्योंकि राष्ट्र तथा नीति निर्देशक तत्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्य विहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग तथा कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को सोचनीय स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तब ही शाश्वत तथा स्थाई हो सकती है जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है।
वही देश और राष्ट्र चिरस्थाई तथा लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक एवं प्रजा अपने संपूर्ण कार्य मूल्यों, उसूलों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चलकर वैश्विक देशों से अपने संबंध निर्मल तथा सैद्धांतिक बनाकर रखता हैअन्यथा उस राष्ट्र को विखंडित और पराधीन होने से कोई नहीं बचा सकताl
(नोटः लेखक के ये अपने निजी विचार हैं)

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Web Title-Thinking about life: Escapist reality arises from indolence, struggle leads to higher morale
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