चंडीगढ़। अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस के मौके पर आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ प्रशासन और राज्यपाल पर विधवाओं की अनदेखी का गंभीर आरोप लगाते हुए कई महत्वपूर्ण माँगें उठाईं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विजयपाल सिंह ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि यह दिन महज औपचारिकता न बन जाए, इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार विधवाओं की असल ज़रूरतों को समझे और ठोस निर्णय ले।
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उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ की लगभग 8,500 से अधिक विधवाओं को न तो पर्याप्त पेंशन मिल रही है और न ही सामाजिक सुरक्षा की दूसरी बुनियादी सुविधाएँ। राज्यपाल और प्रशासक को बार-बार ज्ञापन देने के बावजूद कार्रवाई न होने पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि "राज्यपाल भवन अब केवल पोस्ट ऑफिस बन गया है जहाँ जनता की आवाज़ दर्ज तो होती है लेकिन कोई हल नहीं निकलता।"
विधवाओं की बदहाल स्थिति
चंडीगढ़ में विधवा पेंशन महज़ ₹1,000 प्रतिमाह है, जो कि वर्ष 2016 से अब तक बिना किसी बढ़ोतरी के मिल रही है। जबकि पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में पेंशन की राशि ₹1,500 से ₹3,000 तक पहुँच चुकी है। जनवरी से अप्रैल 2025 तक करीब 25,000 लाभार्थियों (जिनमें विधवाएँ, वरिष्ठ नागरिक एवं दिव्यांगजन शामिल हैं) को पेंशन तक नहीं मिली, जिससे उनके सामने रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलाने में कठिनाई पैदा हो गई है।
मई 2025 से लागू की गई यूनिफाइड पेंशन स्कीम भी स्पष्टता के अभाव में विवादों के घेरे में है। आम आदमी पार्टी का दावा है कि प्रशासन अब तक यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि कितनी विधवाओं को इस योजना के तहत भुगतान मिला है।
‘आप’ की मुख्य माँगें
विधवा पेंशन राशि को ₹2,500 से ₹3,000 प्रति माह तक बढ़ाया जाए।
जनवरी से अप्रैल 2025 तक लंबित पेंशन तुरंत जारी हो।
स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में विधवाओं को विशेष प्राथमिकता दी जाए।
सरकारी नौकरियों में विधवाओं को आरक्षण व प्राथमिकता मिले ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
प्रशासन पर तीखा प्रहार
विजयपाल सिंह ने कहा कि "चंडीगढ़ की विधवाओं के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। यहाँ की पेंशन दरें पंजाब व हरियाणा से काफी पीछे हैं। प्रशासन की यह उदासीनता महिला सम्मान के खिलाफ है।" उन्होंने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने समय रहते इन मुद्दों का समाधान नहीं किया तो पार्टी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगी।
संदेश में संवेदनशीलता पर जोर
‘आप’ प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस केवल प्रतीकात्मक न रह जाए, इसके लिए प्रशासन को इस वर्ग के जीवन में बदलाव लाने वाले निर्णय तुरंत लेने होंगे। “जब तक विधवाओं को उनके अधिकार नहीं मिलते, तब तक इस दिन का कोई मतलब नहीं है,” उन्होंने कहा।
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