राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं, लालू प्रसाद का वह स्वर्णिम
काल था। इस समय में वे किंगमेकर तक की भूमिका में आ गए थे। हालांकि 1997
में चारा घोटाला मामले में आरोपपत्र दाखिल हुआ और 2013 में लालू को जेल भेज
दिया गया। उसके बाद उनके चुनाव लडऩे पर भी रोक लग गई। किशोर कहते हैं,
इसके बाद बिहार के लोगों को विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार मिल गए। जब
मतदाता को स्वच्छ छवि का विकल्प उपलब्ध हुआ तो मतदाता उस ओर खिसक गए।
हालांकि विधानसभा चुनाव 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी
गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी और विजयी भी हो गई, परंतु कुछ ही समय
के बाद लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे और नीतीश को लालू का
साथ छोड़ देना पड़ा। नीतीश का अलग होना लालू के लिए किसी बड़े झटके से कम
नहीं था। रातों रात लालू प्रसाद एक बार फिर राज्य की सत्ता से बाहर हो गए
और उनकी पार्टी विपक्ष की भूमिका में आ गई।
इसके बाद लालू पर पुराने चारा
घोटाले के कई अन्य मामलों में भी सजा हो गई। लोकसभा चुनाव 2019 से पार्टी
को बड़े परिणाम की आशा थी, मगर जातीय गणित का तिलस्म भी इस चुनाव में काम
नहीं आया और किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले लालू को एक अदद सीट के भी लाले
पड़ गए। लालू को नजदीक से जानने वाले किशोर कहते हैं कि इस चुनाव में
मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी राजद से दूर हो गए।
यही कारण है कि कई मुस्लिम
बहुल इलाकों में भी राजद को कारारी हार का सामना करना पड़ा। लालू के जेल
जाने के बाद दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप में विरासत की लड़ाई शुरू हो
गई। वर्ष 2018 में लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप की शादी हुई, पर कुछ दिन
के बाद ही तेजप्रताप तलाक के लिए अदालत की शरण में पहुंच गए।
बहरहाल, राजद
की स्थिति यह हो गई है कि लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती को भी
पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से दो बार हार का समाना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव
परिणाम के बाद हालत ये हैं कि राजद के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को
नीतीश कुमार को एक बार फिर से साथ आने के लिए न्योता देना पड़ रहा है।
(IANS)
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