भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी छवि के राय रघुवर सरकार में मंत्री रहते
सरकार के कई फैसलों की खिलाफत करते रहे हैं। उम्मीदवारों की चौथी सूची में
भी अपना नाम नहीं देखकर सरयू ने अपनी सीट जमशेदपुर (पश्चिमी) छोड़कर
मुख्यमंत्री रघुवर दास की सीट जमशेदपुर (पूर्वी) से चुनाव लड़ने की घोषणा
कर दी और बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए।
बिहार में भाजपा
के साथ मिलकर सरकार चला रही जद (यू) सरयू राय की इस घोषणा के बाद उनके
समर्थन में उतर गई। हालांकि बाद में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने
झारखंड के चुनाव प्रचार में नहीं जाने की घोषणा कर दी।
राजनीतिक के
जानकार भी कहते हैं कि नीतीश ने झारखंड में सरयू के बहाने एक तीर से कई
निशाने साधे हैं। रांची के वरिष्ठ पत्रकार और झारखंड की राजनीति को नजदीक
से जानने वाले संपूर्णानंद भारती कहते हैं, "सरयू राय को समर्थन देने की
घोषणा जद (यू) के सांसद ललन सिंह ने रांची में बिना पार्टी अध्यक्ष नीतीश
कुमार से पूछे नहीं की होगी। इस दौरान सिंह ने स्पष्ट कहा था कि सरयू राय
के चुनावी प्रचार में नीतीश कुमार भी आ सकते हैं।"
इसके अगले ही दिन नीतीश ने स्पष्ट कह दिया कि वहां मेरी कोई जरूरत नहीं है।"
भारती
कहते हैं कि नीतीश ने एक तरफ जहां भाजपा को आईना दिखाया, वहीं यह भी बता
दिया कि वह भाजपा के साथ है और उसके विरोध करने वाले के साथ नहीं हैं।
राजनीतिक
विश्लेषक सुरेंद्र किशोर हालांकि इससे इत्तेफाक नहीं रखते। किशोर कहते हैं
कि सांसद ललन सिंह ने अतिउत्साह में नीतीश कुमार को लेकर बयान दे दिए
होंगे। नीतीश और सरयू की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है और चुनाव प्रचार में
आना और न आना भी इनके रिश्ते में कोई मायने नहीं रखता। मेरी अपनी सोच है कि
गहरी दोस्ती के कारण ही सांसद ने ऐसा बयान दिया होगा।"
किशोर
हालांकि यह भी कहते हैं कि जद (यू) ने तो भाजपा को उसी दिन आईना दिखा दिखा
दिया था, जिस दिन उसने झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की थी।
हालांकि इसमें राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने की सोच भी रही होगी।
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