पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार ने शराबबंदी कानून में यूटर्न लिया है। बिहार राज्य मंत्रिपरिषद ने बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 में संशोधन विधेयक 2018 सहित तीन अन्य संशोधन विधेयकों को विधानमंडल सत्र में पेश किए जाने को मंजूरी दे दी है। संशोधन विधेयक में शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए मौजूदा सजा के प्रावधान में बदलाव कर उसे कम किया जाना है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उल्लेखनीय है कि, सरकार ने पिछले महीने की इस कानून में संशोधन के संकेत दिए थे। सूत्रों ने बताया कि बुधवार को कैबिनेट की बैठक हुई। सीएम नीतीश कुमार की कैबिनेट ने शराब बंदी के जुड़े कुछ कड़े प्रावधानों को हटा दिया जाएगा। पहले किसी घर या वाहन में शराब मिलने पर उस घर या वाहन को जब्त करने का प्रावधान था। सूत्रों ने बताया कि अब घर और वाहन को जब्त नहीं किया जाएगा। कैबिनेट सचिव अरुण कुमार ने कहा, ‘विधानसभा के मॉनसून सत्र में बिहार सरकार शराब बंदी कानून पर संशोधन प्रस्ताव लाएगी।’ संशोधन के तहत अब शराब मिलने पर घर और वाहन जब्त करने के प्रावधान को हटाया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि इस संशोधन में सामूहिक जुर्माने को भी खत्म करने के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में संपन्न मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के प्रधानसचिव अरुण कुमार सिंह ने बताया कि मंत्रिपरिषद ने कुल 33 विषयों पर विचार कर उन्हें मंजूरी प्रदान कर दी है।
उन्होंने बताया कि मंत्रिपरिषद ने बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 में संशोधन विधेयक 2018, बिहार मूल्यवद्र्धित कर अधिनियम 2005, बिहार होटल विलासवस्तु काराधान अधिनियम एवं बिहार मनोरंजन कर अधिनियम को संशोधित करने से संबंधित विधेयक तथा बिहार राज्य दहेज प्रतिषेध बिहार संशोधन अधिनियम 1975 के निरसन के लिए बिहार राज्य दहेज प्रतिषेध बिहार संशोधन अधिनियम 2018 को विधानमंडल सत्र में पेश किए जाने को आज मंजूरी प्रदान कर दी।
उल्लेखनीय है कि बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र आगामी 20 जुलाई से शुरू होने वाला है। बिहार में पांच अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है और इसे कड़ाई से लागू किए जाने के लिए नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 को सर्वसम्मिति से विधानमंडल से पारित करवाया था पर बाद में इसके कुछ प्रावधानों को कड़ा बताए जाने तथा इस कानून का दुरूपयोग किए जाने का आरोप लगाते हुए विपक्ष द्वारा इसकी आलोचना की जाती रही है। गत 11 जून को लोकसंवाद कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान शराबबंदी कानून में कुछ तब्दीली से संबंधित प्रश्न के संबंध में मुख्यमंत्री ने कहा था कि हमलोगों ने राज्य में पूरी ईमानदारी से शराबबंदी कानून को लागू किया है। इसमें कुछ कड़े प्रावधान हैं, इसके लिए कार्यक्रम में एक राय बनाने के लिए ऑल पार्टी मीटिंग की गई थी।
उन्होंने कहा था कि उक्त कानून का दुरुपयोग न हो, इसके लिए मुख्य सचिव ने अधिकारियों की एक कमिटी बनायी है। समिति अध्ययन के आधार पर यह जानकारी देगी कि इसमें क्या सुधार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित मामला चल रहा है। अत: अपने सीनियर एडवोकेट और एडवोकेट जनरल से विचार करेंगे और उसके बाद ही कुछ निर्णय लिया जाएगा। कानूनी एवं संवैधानिक पहलू को ध्यान में रखते हुए इन सब चीजों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। नीतीश ने कहा था कि शराबबंदी कानून का प्रभावकारी ढंग से पालन हो, इसके किसी अंश का दुरुपयोग न हो। अंतत: हम लोगों का लक्ष्य शराबबंदी से आगे बढ़ते हुए नशामुक्त समाज बनाना है।
बिहार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने कहा बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 में संशोधन विधेयक 2018 के बारे में बताया कि पहले शराब के उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता, विक्रेता के लिए दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था। लेकिन अब इसे दो स्लैब में किया गया है। उन्होंने बताया कि अब पहली बार यह जुर्म करने पर 50 हजार रुपए का जुर्माना और जुर्माना नहीं भरने पर तीन महीने के कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने बताया कि पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर उसे जमानती और असंज्ञेय बना दिया गया है। हालांकि दोबारा शराब पीते पकड़े जाने पर सजा बढ़ जाएगी। पहले यह जुर्म करने वाले को उन्हें कम से कम पांच साल के कारावास की सजा का प्रावधान था। उसके बाद भी वही जुर्म करते हैं तो उनके लिए दस साल के कारावास की सजा का प्रावधान किया गया था। किशोर ने बताया कि शराब पीने वाले के लिए पहले पांच साल के कारावास की सजा थी। यह पूछे जाने पर कि बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 के तहत वर्तमान में पकड़े गए आरोपियों को भी क्या इसका लाभ मिलेगा, किशोर ने कहा कि सभी ऐसे लंबित मामलों में आरोपियों को इसका लाभ मिलेगा।
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