उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकांश बच्चों में हाइपोग्लाइसीमिया
यानी अचानक शुगर की कमी और कुछ बच्चों के शरीर में सोडियम (नमक) की मात्रा
भी कम पाई जा रही है। उन्होंने कहा कि एईएस के संदिग्ध मरीजों का इलाज शुरू
करने से पहले चिकित्सक उसकी जांच कराते हैं। ब्लड शुगर, सोडियम, पोटाशियम
की जांच के बाद ही उसका इलाज शुरू किया जाता है।
इधर, केजरीवाल
अस्पताल प्रबंधक ने कहा कि एक सप्ताह के भीतर यहां चमकी बुखार से पीड़ित 39
बच्चों को भर्ती किया गया, जिसमें से चार बच्चों की मौत हो गई। उन्होंने
बताया कि सात बच्चों का अभी भी इलाज चल रहा है।
एसकेएमसीएच में चिकित्सकों एवं कर्मियों की 24 घंटे ड्यूटी लगाई गई है। उमस भरी गर्मी के कारण ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है।
इधर,
मुजफ्फरपुर में फैली बीमारी एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) और जापानी
इंसेफलाइटिस (जेई) से हो रही बच्चों की मौत पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने
सोमवार को कहा कि स्वास्थ्य विभाग इस पूरे मामले पर नजर रख रहा है। बरसात
से पहले ये बीमारी हर साल बिहार में कहर बरपाती है। इसकी पूरी जांच की जा
रही है।
उन्होंने कहा, "लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक कराना होगा। हर साल बच्चे काल की गाल में समा जा रहे हैं। ये चिंता का विषय है।"
उल्लेखनीय
है कि उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, शिवहर,
सीतामढ़ी व वैशाली में बीमारी का प्रभाव दिखता है। इस साल अब तक एसकेएमसीएच
में जो मरीज आ रहे हैं, वे मुजफ्फरपुर और आसपास के हैं।
इधर,
स्वास्थ्य विभाग अभी तक मात्र 11 बच्चों की मौत की पुष्टि कर रहा है।
स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इस मौसम में अब तक 11 बच्चों की मौत हुई है,
जिसमें अधिकांश बच्चों की मौत हाइपोग्लाइसीमिया के कारण हुई है।
--आईएएनएस
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