गांव वासी बताते हैं कि कई सालों पहले यहां मुस्लिम परिवार रहते
थे, परंतु धीरे-धीरे उनका पलायन हो गया और इस गांव में उनकी मस्ज्दि भर रह
गई है।
गांव के हंस कुमार बताते हैं कि हम हिंदुओं को अजान तो आती
नहीं है, परंतु पेन ड्राईव की मदद से अजान की रस्म अदा की जाती है। गांव
वालों का कहना है कि यह मस्जिद उनकी आस्था से जुड़ी हुई है।
मस्जिद
की साफ-सफाई की जिम्मेदारी संभाल रहे गौतम कहते हैं कि किसी शुभ कार्य से
पहले हिंदू परिवार के लोग इस मस्जिद में आकर दर्शन करते हैं।
इस
मस्जिद का निर्माण कब और किसने कराया, इसे लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण तो नहीं
है, परंतु स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने जो उन्हें बताया
है, उसके मुताबिक यह करीब 200-250 साल पुरानी है। मस्जिद के सामने एक मजार
भी है, जिस पर लोग चादरपोशी करते हैं।
गांव के जानकी पंडित ने बताया
कि मस्जिद में नियम के मुताबिक सुबह और शाम सफाई की जाती है, जिसका
दायित्च यहीं के लोग निभाते हैं। गांव में कभी भी किसी परिवार के घर अशुभ
होता है तब वह परिवार मजार की ओर ही दुआ मांगने पहुंचता है।
बहरहाल, माड़ी गांव की इस मस्जिद से भले ही मुस्लिमों का नाता-रिश्ता टूट गया हो, परंतु हिंदुओं ने इस मस्जिद को बरकरार रखा है।
(आईएएनएस)
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