मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर सहित करीब 20 जिलों में फैले एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण अभिभावक जहां अपने बच्चों को खोने को लेकर भयभीत हैं, वहीं इस बीमारी से पीडि़त बच्चे अपना बचपन खो रहे हैं। इस बीमारी से बचकर अस्पताल से घर लौटे बच्चों की स्थिति ठीक नहीं है। पहले से ही गरीबी और कुपोषण के शिकार इन बच्चों को एईएस ने पूरी तरह तोड़ दिया है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट के मंतोष कुमार अपनी पांच वर्षीय बेटी श्वेता का बचपन लौटाने के लिए अस्पताल, मंदिर-मस्जिद से लेकर झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं, लेकिन श्वेता अपनी बचपन वाली ठिठोली और चंचलता भूल गई है। मंतोष को इस बात का मलाल है कि उसकी नन्ही बच्ची की तोतली बोली की गूंज अब घर में धीमी हो गई है, परंतु उन्हें इस बात का संतोष भी है कि भगवान की कृपा से उनकी बच्ची कम से कम बच गई है।
श्वेता उन बच्चों में से एक है, जिसे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) ने अपनी चपेट में ले लिया था। मंतोष कहते हैं, 17 जून को श्वेता को मुजफ्फरपुर के श्रीष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) इलाज के लिए ले जाया गया था और उसे 22 जून को छुट्टी दे दी गई। उन्होंने कहा, श्वेता को तो घर ले आए, लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं हुई। दूसरे ही दिन उसकी हालत एक बार फिर खराब हो गई। उसे ओझा-गुणी के पास ले गए, परंतु कुछ नहीं हुआ।
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