कोनराड के. संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को मेघालय की दो सीटों
में से एक पर साझेदारी के लिए राजी करना मुश्किल होगा। एनपीपी, नार्थ ईस्ट
डेमोक्रेटिक एलांयस (एनईडीए) का सदस्य है। कश्यप ने कहा कि कांग्रेस के लिए
यह मुश्किल भरा समय होगा, जिसे भाजपा व उसके सहयोगियों ने बीते तीन सालों
में क्षेत्र से सफाया कर दिया है।
पूर्वोत्तर में 27-28 फीसदी आबादी वाले
जनजातीय लोग पहाड़ी क्षेत्र की राजनीतिक में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं। मणिपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व राजनीतिक विश्लेषक चिंगलेन
मैसनम के अनुसार, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 ने बीते दो महीनों में
क्षेत्र के लोगों की मानसिकता बदल दी है। उन्होंने कहा, नागरिकता विधेयक ने
पूरी तरह से राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है।
मैसनम ने आईएएनएस से कहा,
राज्य सरकारों के पास प्रवासियों व घुसपैठ के मुद्दों पर सीमित अधिकार हैं।
मेघालय व पूर्वोत्तर के राज्यों ने इन मुद्दों से निपटने के लिए कानून
बनाने की कोशिश की, लेकिन जब संवैधानिक जानकारों ने इस तरह के कदम के खिलाफ
राय जाहिर की तो वे ऐसा करने से पीछे हट गए।
मैसनम ने कहा कि नागा शांति
वार्ता समझौते की सामग्री का अप्रकाशन व 7वें वेतन आयोग और कुछ अन्य
स्थानीय मुद्दों की सिफारिशों के अनुसार सरकारी कर्मचारियों के वेतन और
भत्ते में बढ़ोतरी के लिए आंदोलन से भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर
पड़ेगा और कांग्रेस को कुछ हद तक मदद मिलेगी। त्रिपुरा (सेंट्रल)
विश्वविद्यालय के शिक्षक व राजनीतिक टिप्पणीकार सलीम शाह ने आईएएनएस से
कहा, बढ़ती बेरोजगारी पूर्वोत्तर क्षेत्र के युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण
मुद्दा हो सकती है।
देश के दूसरे राज्यों के विपरीत पूर्वोत्तर में चुनावी
राजनीति में मूल पहचान का मुद्दा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पूर्वोत्तर
की पहचान देश के दूसरे भागों से कुछ अलग है। पूर्वोत्तर के 25 लोकसभा सीटों
में से दो सीटें -नागालैंड व मेघालय प्रत्येक में एक-एक नेफियू रियो व
कोनराड के.संगमा के मुख्यमंत्री बनने से दोनों राज्यों में क्रमश: खाली
हैं।
(IANS)
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