गुवाहाटी। तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को कहा कि वह भारत
सरकार के सबसे लंबे समय से मेहमान हैं और अब भारतीय संस्कृति के वाहक बन गए
हैं। दलाई लामा ने यहां आधुनिक समय में प्राचीन भारतीय ज्ञान विषय पर
व्याख्यान देते हुए कहा, मैं पिछले 58 साल से भारत सरकार का सबसे पुराना
मेहमान हूं और भारतीय संस्कृति का वाहक बनकर भारत को लौटा रहा हूं।
दलाईलामा ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय के सभागार में कहा कि पिछले कुछ साल से
मैंने खुद को भारत का बेटा कहना शुरू कर दिया है। कुछ साल पहले चीनी
मीडिया के कुछ लोगों ने मुझसे आकर पूछा कि मैंने ऎसा क्यों कहा। मैंने उनसे
कहा कि मेरे मस्तिष्क का हर हिस्सा नालंदा के विचारों से भरा है। उन्होंने
कहा, शारीरिक रूप से पिछले 50 साल से अधिक समय से मेरा शरीर भारत की दाल
और चपाती पर चल रहा है। इसलिए मैं शारीरिक और मानसिक रूप से भारतीय हूं।
धर्मनिरपेक्षता की बात करते हुए दलाई लामा ने कहा, मैं पूरी तरह
सांप्रदायिक सद्भाव को बढाने के लिए प्रतिबद्ध हूं। समझने की बात है कि कुछ
शरारती तत्व समस्या खडी करते हैं।
उन्होंने कहा कि सभी मतभेदों और
समस्याओं को खत्म करने का एकमात्र तरीका है कि हम यह सोचने लगें कि हम सभी
मनुष्य हैं।
इसी समारोह में अपनी आत्मकथा माई लैंड एंड माई पीपुल के असमिया संस्करण का
विमोचन करते हुए तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि वह अहिंसा वाले
शांतिपूर्ण संसार को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता कि
मैं अपने जीते जी कोई बदलाव देख पाऊंगा या नहीं, लेकिन मैं आशावादी हूं।
शिक्षा के माध्यम से नई पीढी इस बात को समझेगी और दया और प्रेम को
प्रोत्साहित करेगी। मानवता का भविष्य मानवता पर ही निर्भर करता है, भगवान
पर नहीं।
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