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पिछड़ापन नहीं अपितु गौरवान्वित परम्परा है पैर छूना

Touching feet is not a backwardness but a proud tradition - Relationship

राकेश को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब उसके साडू के बेटे ने उसके पिता, भाई और स्वयं उसके न सिर्फ पैर छुए अपितु सभी से उनके स्वास्थ्य को लेकर बातचीत की। राकेश का हैरान होना लाजिमी था, उसका कारण यह था कि यह पहला मौका नहीं था जब उसके साडू के बेटे ने यह कार्य किया हो। जब भी वह मिलता वह यही करता था। साडू और उसके परिवार के जाने के बाद राकेश के घर में इस बात को लेकर कहा-सुनी शुरू हो गई। राकेश के पिता का कहना था कि उन्हें बहुत अफसोस है कि मेरे बेटे, बहू, पोते-पोती कभी किसी का मान सम्मान नहीं करते हैं। पैर छूना तो दूर वो कभी घर में होते हुए यह तक नहीं पूछते कि दादाजी आप कैसे हैं। यह संस्कारों के साथ-साथ सोच का फर्क है। आज की पीढ़ी अपने बच्चों को बड़ों का सम्मान करना या उनके पैर छूना नहीं सिखाती है, जबकि हमारे समय में हमारे माँ-बाप हमें यह जरूर सिखाते थे और हम स्वयं भी उन्हें देखकर सीखे कि जब कोई बड़ा आपके घर आता है या कहीं पर भी मिलता है तो उसके पैर छू कर उसका आशीर्वाद लेना चाहिए। पुरानी पीढ़ी के लोगों की सोच होती है कि बड़ो व आदरजनों के पैर छूने चाहिए, जबकि नई पीढ़ी को पैर छूने की समूची अवधारणा ही गुजरे जमाने की पिछड़ी सोच लगती है। सवाल है सही कौन है?

प्राचीन परंपरा
हमारे यहां पुराने समय से ही यह परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम अपने से बड़े किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इस परंपरा को मान-सम्मान की नजर से देखा जाता है। आज की युवा पीढी को कई मामलों में इससे भी परहेज है। नई पीढ़ी के युवा कई बार घर परिवार और रिश्तेदारों के सामाजिक दवाब में अपने से बड़ो के पैर छूने की परम्परा का निर्वाह तो करते हैं, लेकिन दिल दिमाग से वह इसके लिए तैयार नहीं होते। इसलिए कई बार पैर छूने के नाम पर बस सामने कमर तक झुकते भर हैं। कुछ थोड़ा और कंधे तक झुककर इस तरह के हावभाव दर्शाते हैं, मानों पैर छू रहें हो, लेकिन पैर छूते नहीं।

जब कोई आपके पैर छूए
पैर छूने वाले व्यक्ति को हमेशा दिल से आशीवार्द देना चाहिए, क्योंकि इसी से पैर छूने और छुआने वाले को सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इससे हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, उम्र बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियों से उसकी रक्षा होती है।

वैज्ञानिक कारण
यह एक वैज्ञानिक क्रिया भी है, जो कि हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ी होने के साथ साथ इसका अपना एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी है। वास्तव में जब हम झुककर पैर छूते हैं तो जाहिर है हम उसके प्रति आदर का भाव रखते हैं, इसी भावना के चलते सकारात्मक ऊर्जा की लहर हमारे शरीर में पहुंचती है। इससे हमें एक विशिष्ट किस्म की ताजगी और प्रफुल्लता मिलती है।

यह लेखक के अपने निजी विचार हैं। जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों।

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Web Title-Touching feet is not a backwardness but a proud tradition
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Tags: touching feet is not a backwardness but a proud tradition
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