आज सोशल मीडिया केवल एक तकनीकी माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह हमारे व्यक्तिगत और रिश्तों के अनुभवों का अहम हिस्सा बन चुका है। इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हम अपने विचार, तस्वीरें और पर्सनल लाइफ के पल शेयर करते हैं। लेकिन कई बार यही सोशल मीडिया रिश्तों में कड़वाहट, असुरक्षा और झगड़ों का कारण बन जाता है।
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आजकल यह आम होता जा रहा है कि कोई एक पार्टनर दूसरे से कहता है – "तुम सोशल मीडिया बंद कर दो", या "उससे चैट करना बंद करो", या फिर "अगर मुझसे प्यार है, तो इंस्टा डिलीट कर दो"।
सवाल ये है – क्या ऐसा करना वाकई प्यार की निशानी है, या यह नियंत्रण (control) की शुरुआत?
क्या सोशल मीडिया छोड़ना रिश्ते के लिए हेल्दी फैसला है?
इस विषय में विशेषज्ञों की राय बेहद स्पष्ट है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक का इस बारे में कहना है कि, “अगर आप दोनों मिलकर तय करते हैं कि कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से दूर रहना है ताकि आप एक-दूसरे पर ध्यान दे सकें, तो यह एक हेल्दी और सकारात्मक फैसला है। लेकिन अगर कोई एक व्यक्ति डर, दबाव या गिल्ट में आकर अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स डिलीट करता है, तो यह रिश्ते में नियंत्रण का संकेत हो सकता है।”
रिश्तों में समझौते जरूरी होते हैं, लेकिन ऐसे समझौते जो किसी की स्वतंत्रता को खत्म करें, वे सही नहीं माने जा सकते।
विशेषज्ञों के अनुसार, “एक हेल्दी रिलेशनशिप वह होता है जहां पार्टनर आपको खुद के रूप में अपनाते हैं—ना कि आपको बदलने की कोशिश करते हैं।”
इस मांग के पीछे छिपे होते हैं गहरे जज़्बाती मुद्दे
जब कोई पार्टनर बार-बार सोशल मीडिया छोड़ने की बात करता है, तो यह सिर्फ ऐप या चैटिंग की बात नहीं होती। इसके पीछे अक्सर भावनात्मक असुरक्षा, खो जाने का डर, या बीते रिश्तों की कड़वी यादें काम करती हैं। ऐसी मांगें उन लोगों में ज्यादा देखी जाती हैं जो 'इनसिक्योर अटैचमेंट स्टाइल' से ग्रसित होते हैं। कई बार व्यक्ति को डर होता है कि सोशल मीडिया पर कोई और ज़्यादा आकर्षक लग सकता है, या पार्टनर किसी और से जुड़ सकता है। ये डर रिश्ते की जड़ें खोखली कर सकते हैं।
इसका हल टकराव नहीं, बल्कि संवाद है। एक-दूसरे की बातों को बिना जज किए सुनना और समझना बेहद जरूरी है।
रिश्तों में ईर्ष्या एक सामान्य भावना है, लेकिन इसे कैसे हैंडल किया जाए, वही तय करता है कि रिश्ता मजबूत होगा या टूटेगा। डॉ. इदरीस सलाह देते हैं कि जो बातें आपको असहज करती हैं, उन पर शांति से बातचीत करें। यह समझना जरूरी है कि हम रियल लाइफ के बजाय वर्चुअल दुनिया के जरिए अपने पार्टनर को जज कर रहे हैं या नहीं।
रिश्ते में नियमों के बजाय सीमाएं साझा करना ज़रूरी है। सोशल मीडिया से कभी-कभी ब्रेक लेना, या पारदर्शिता के साथ प्राइवेसी का सम्मान करना रिश्ते को और गहरा बना सकता है। आत्म-सम्मान को मजबूत करना, विश्वास कायम रखना, और ज़रूरत हो तो थेरेपिस्ट की मदद लेना, ईर्ष्या को आत्म-विकास में बदल सकता है।
ईर्ष्या को कैसे संभालें बिना आज़ादी छीने?
ईर्ष्या एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन इसका गलत प्रबंधन रिश्ते को तोड़ सकता है। कुछ प्रभावी उपाय सुझाते हैं:
खुलकर बातचीत करें
जब भी आपको असुरक्षा महसूस हो, शांत होकर बात करें। ना चिल्लाएं, ना आरोप लगाएं। पूछें – "क्या ये भावना किसी सच्चाई पर आधारित है, या सिर्फ सोशल मीडिया की वजह से?"
सीमाएं तय करें, नियम नहीं
रिश्ते में "तुम ये मत करो" की बजाय "हमें क्या अच्छा लगेगा" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। इससे एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान होगा।
पारदर्शिता और प्राइवेसी का संतुलन
यह जरूरी है कि आप दोनों अपने सोशल मीडिया व्यवहार में पारदर्शी हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर मैसेज या फॉलोअर की निगरानी की जाए।
सेल्फ-एस्टीम पर काम करें
खुद को समझें, खुद से प्यार करें। जब आत्मसम्मान मजबूत होता है, तब आप रिश्ते में कम असुरक्षित महसूस करते हैं।
थेरपी की मदद लें
अगर असुरक्षा बहुत गहरी है और हर बातचीत टकराव में बदल जाती है, तो कपल थेरपी या काउंसलिंग से मदद ली जा सकती है।
सोशल मीडिया छोड़ना या न छोड़ना—यह कोई एक जवाब वाला सवाल नहीं है। इसका सही जवाब रिश्ते की गुणवत्ता, आपसी समझ और संवाद पर निर्भर करता है। अगर दोनों पार्टनर एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए फैसला लेते हैं, तो वह रिश्ता और भी मजबूत बनता है।
लेकिन अगर प्यार के नाम पर नियंत्रण थोपा जा रहा है, तो आपको खुद से पूछना चाहिए – "क्या मैं इस रिश्ते में खुद को खो रहा हूं?" रिश्ते में समझदारी, विश्वास और आज़ादी तीनों जरूरी हैं। तभी प्यार टिकता है।
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