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वैवाहिक रिश्तों में नहीं लेना चाहिए झूठ का सहारा, ताउम्र होता है दु:ख

One should not take support of lies in marital relations, it leads to sorrow - Relationship

विवाह को सात जन्मों का बन्धन माना जाता है। शादी के बाद इस रिश्ते को ताउम्र विश्वास और प्रेम के सहारे निभाना पड़ता है। कांच से ज्यादा नाजुक इस रिश्ते को निभाना कभी-कभी मुश्किल नजर आने लगता है। आधुनिकता की दौड़ में भाग रहा युवा इस बंधन के महत्व को अनदेखा करने लगा है। उसके लिए शादी का रिश्ता मजाक बन कर रह गया है। ऐसा भी देखा जाने लगा है कि इस रिश्ते को करने के लिए झूठ का सहारा लिया जाने लगा है।

हाल ही में मेरे पड़ोसी ने अपने बेटे की शादी उसका सरकारी अफसर होना बता कर रिश्ता तय कर दिया। जब हम उनके पड़ोस में आकर रहने लगे थे तब हमें भी यही जानकारी मिली थी कि वो किसी बड़े ओहदे पर है। जिस घर में उन्होंने अपने बेटे का रिश्ता किया उनकी बेटी पहले ही से सरकारी विभाग में ऊँचे पद पर कार्यरत थी। शादी के बाद दुल्हन को पता चला कि उसका पति किसी ऊँचे पद पर नहीं अपितु एक मामूली सा क्लर्क है। घर आई बहू अब समझ नहीं पा रही है कि वह क्या करे। गणगौर की पूजा समाप्ति पर वह अपने पीहर से ससुराल वापस आई। शाम के वक्त वह अपने हाथों में मिठाई लेकर मेरी पत्नी के पास आई। बातचीत में उसने यह सब कुछ बताया। अपने पति व ससुराल वालों के प्रति उसके मन अनादर के भाव थे। उसने बताया कि उसने अपने माता-पिता से कहा है कि वह उसे तलाक दिला दें। परन्तु घर के अन्य रिश्तेदारों से उसके माता-पिता से कहा कि इसे नियति मानकर स्वीकार कर लो। उसका कहना है कि उसके मन में अब ससुराल और पति के प्रति अविश्वास का भाव घर कर गया है। उसे उनकी किसी बात पर विश्वास नहीं होता, जिसके चलते घर में कलह का वातावरण रहने लगा है। न वह पति से जुड़ाव महसूस करती है, न ही उनके प्रति उसके मन में सम्मान की भावना है। उनके रिश्तों में एक अजीब-सा खिंचाव आ गया है। मैं इस रिश्ते को जिन्दगी नहीं ढो सकती हूं। अगर माता-पिता ने सहयोग नहीं किया तो अब स्वयं अपने स्तर पर अपना निर्णय लेकर जिन्दगी को गुजारूंगी।

एक नहीं ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां शादी के लिए लडक़े या लडक़ी पक्ष वाले झूठ बोल देते हैं, जिसका असर उनकी जिंदगी पर पड़ता है। यह गलत है। झूठ का सहारा लेकर किए गए रिश्ते दुख ही देते हैं। ऊपर वर्णित घटनाक्रम को ही देखें विवाह तो हो ही गया है, मजबूरी में ससुराल में रहना है। उसने अभी तक सामाजिक दबाव के कारण तलाक भले ही नहीं लिया, किंतु एक झूठ के कारण ससुराल वाले उसकी नजरों में गिर गए हैं। आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा।

दोनों पक्ष करते हैं गलती

वैवाहिक संबंध स्थापित करते वक्त दोनों पक्षों द्वारा झूठ का सहारा लिया जाता है। फिर चाहे वह झूठ छोटा हो या बड़ा झूठ ही होता है। इसके पीछे भी कई कारण काम करते हैं—जैसे—कभी अच्छी लडक़ी और अधिक दहेज की उम्मीद के कारण वर पक्ष गलत जानकारी देता है, तो कभी अच्छा घर-वर देखकर वधू पक्ष ऐसा कर बैठता है। उस समय उनके मन में यह विचार नहीं उठता कि बाद में जब सच्चाई सामने आएगी तब क्या होगा।
विवाह सम्बन्धों के वक्त आमतौर पर कुछ ऐसे झूठ बोले जाते हैं जो अब सामान्य से लगने लगे हैं। जैसे—लडक़े या लडक़ी की उम्र कम बताना, लडक़ी के गुणों की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करना, लडक़े की पढ़ाई, नौकरी या फिर उसकी कमाई दो-तीन गुना बता देना, लडक़े-लडक़ी की बीमारियों को छिपाना, उनकी आदतों, चाल-चलन के बारे में गलत जानकारी देना। इन मामलों में आजकल के मध्यस्थों अर्थात् मैरिज ब्यूरो वालों की भी अहम् भूमिका होती है।

कई बार वर या वधू के माता-पिता द्वारा सम्पूर्ण तथ्य सही बताने के बावजूद बिचौलिए या शादी-ब्याह के दलाल (मेट्रीमोनियल एजेन्ट) या कथित एजेंसियाँ अपने मोटे कमीशन की लालच में जैसे-तैसे झूठे-सच्चे वादे एवं गलत जानकारियाँ देकर रिश्ते करवा देते हैं। बाद में सच्चाई सामने आने पर वर और वधू लड़ते -झगड़ते रहते हैं। पति-पत्नी में तनातनी चलती रहती है और कई बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है, जिसकी परिणति तलाक के रूप में होती है। वस्तुत: विवाहोपरान्त किसी रिश्तेदार या अन्य माध्यम से जब प्रभावित पक्ष को झूठ का पता चलता है, तो वह ठगा-सा महसूस करता है और आक्रामक हो उठता है। परिणामस्वरूप झगड़ा होकर परिवार बिखर जाता है, संबंध टूट जाते हैं।

दूसरी अहम् भूमिका इंटरनेट की है। भागदौड़ से भरी जिन्दगी में वर्तमान में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वर-वधू की सही जानकारी एकत्रित कर सके, इसलिए आपसी संबंध खत्म होने लगे हैं। अब अधिकतर शादियाँ इंटरनेट के जरिए हो रही हैं, जहाँ बायोडेटा में गलत जानकारियाँ दे दी जाती हैं। गुजरे जमाने की तरह खानदान का विस्तार तो रहा नहीं, परिवार सिमटकर पति-पत्नी और दो बच्चों तक रह गया है। ऐसे में शादी के लिए खानदान की जांच-पड़ताल करवा पाना भी मुश्किल होता जा रहा है। अखबार के विज्ञापन हों या फिर इंटरनेट के जरिए की जा रही शादी, दोनों ही सूरतों में सही जांच-पड़ताल हो पाना थोड़ा मुश्किल होता है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह दो जिन्दगियों और उसके बाद आने वाली पीढ़ी का सवाल है, जब तक सामने वाले पक्ष के बारे में पूरी तरह से सही जानकारी हासिल न हो जाए, रिश्तों को तय करने की जल्दबाजी न करें। कहीं ऐसा न हो कि आपकी जल्दबाजी आपको ताउम्र का पछताव दे।

कई बार तो माता-पिता कमियाँ जानने के बावजूद इस सोच में बच्चों की शादी तय कर देते हैं कि शायद शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होता। अगर आपका बेटा या बेटी अपनी पसन्द से शादी करना चाहते हैं तो उन्हें स्वीकार कीजिए। अपनी मर्जी या जिद से यदि आपने उनकी शादी कहीं और कर दी तो तय है दो जिन्दगियाँ और दो परिवार बर्बाद हो जाएंगे। यह भूल कभी न करें। अब वक्त बदल गया है। जात-पात, ऊँच-नीच के प्रति धारणा बदलने लगी है।

एक झूठ से कई जिन्दगियाँ बर्बाद हो जाती हैं। दोनों पक्षों को जो सही है उसकी जानकारी का आदान-प्रदान करना चाहिए। सभी बातों के बाद अगर वे राजी होते हैं तो रिश्तों को पक्का करना चाहिए। एक बार शादी हो जाए, फिर सब ठीक हो जाएगा, ऐसा सोचकर झूठी-सच्ची बातें बनाकर तय किए गए संबंधों का नतीजा कभी भी अच्छा नहीं होता। कभी-कभी लडक़ा या लडक़ी आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। अत: समझदारी इसी में है कि तथ्यों को सही-सही बयान करें।

पूर्ण कोई नहीं होता, हरेक में कोई न कोई कमी होती है, यदि उन कमियों को सही रूप में पहले ही सामने रख दिया जाए, तो शायद ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा जो आपको जिन्दगी भर का दुख दे जाए। जिन रिश्तों में ईमानदारी, स्पष्टवादिता और विश्वास की नींव होती वही वैवाहिक रिश्ते खूबसूरत होते हैं। झूठ की नींव पर रखे गए रिश्तों में न मधुरता होती है न स्थिरता। ऐसे रिश्तों का अन्त हमेशा दु:खद ही होता है।

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