देखा जाए तो युवतियों का कहना भी गलत नहीं था। घर आई बहू से सभी को बहुत
अपेक्षाएँ होती हैं। पुत्र की शादी के बाद अक्सर परिवार की
महत्त्वाकांक्षाएँ अपनी बहू के प्रति बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं। परिवार
वालों की तरफ से यह नहीं सोचा जाता कि जिसने अपनी जिन्दगी के 22-25 वर्ष एक
परिवार में बिताए हैं वह अब दूसरे घर की जिम्मेदारी लेने जा रही है तो उसे
वैसा ही माहौल दिया जाए जैसा वो अपने मायके में देखती आई है। लेकिन ऐसा
बहुत कम घरों में देखा जाता है जहाँ बहू को बहू के रूप में नहीं अपितु घर
की बेटी के रूप में स्वीकारा जाता है। जहाँ बहू को बेटी के रूप में स्वीकार
कर लिया जाता है, वह घर खुशहाल और सम्पन्न नजर आता है और जिन घरों में बहू
से ज्यादा तवज्जो अपने पुत्र और पुत्री को दी जाती है, वहाँ हमेशा कलह का
वातावरण नजर आता है। परिणाम थक-हार के परिवार टूट जाता है। ये भी पढ़ें - गर्म पानी पीने के 8 कमाल के लाभ
मैं आपको
अपना अनुभव बताता हूँ। मेरे माँ-बाप ने कभी भी बहुओं को वो मान-सम्मान
नहीं दिया जिसकी वो हकदार हैं। उन्होंने पूरी जिन्दगी अपनी बेटियों को ही
सर्वोपरि माना। बेटियों की दखलंदाजी के चलते ही हमारा पूरा परिवार तिनके की
तरह बिखर गया। ऐसा नहीं है कि इसमें सारी गलती हमारे माँ-बाप की रही है,
अपितु इसमें हमने भी सहयोग किया। हमने कभी यह नहीं सोचा कि जो लडक़ी 25 साल
अपने एक ही घर में बिताकर उसे छोड़ हमारे साथ आई हमें उसके साथ किस तरह का
व्यवहार करना चाहिए।
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