डा पीयूष त्रिवेदी आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी राजस्थान विधान सभा जयपुर। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जयपुर।अधिकतर दवाइयां गोल टैबलेट में ही आती हैं, जो दवाई बहुत कड़वी होती है ,उसे कैप्सूल में बनाते हैं .कैप्सूल लंबा और अंडा कार एक पैटर्न हो गया है इस शक्ल में कोई और चीज भी होती है तो उसको भी कैप्सूल ही कहते हैं, जो टैबलेट गोल बनते हैं मुझे उसमें कुछ परेशानी आती है पहली बात रैपर से खोलते समय वह छूट जाती है, फिर उछल कर कहां चली गई उसको ढूंढना मुश्किल हो जाता है, कभी-कभी मिलती ही नहीं ,अगले दिन झाड़ू लगाते समय मिलती है,टैबलेट पर एक केंद्र में रेखा का निशान होता है ,आधी खानी है तो आप तोड़ लीजिए वह टूटने में बहुत मुश्किल होती है ,कुछ टैबलेट इतनी छोटी बनती है कि उसको संभालना और अगर दो करना है तो असंभव जैसा काम हो जाता है ,मैं चाहता हूं कि टैबलेट लंबाई में बने अगर हाथ से छूटेगी तो गायब होने का चांस नहीं है।
अगर टैबलेट को तोड़ के आधा करना होगा तो आसान होगा एवम् आसानी से टूट जाएगी।
टैबलेट बहुत छोटी नहीं बननी चाहिए जो उसका करियर पदार्थ है उसको बढ़ा दिया जाए और उसकी लंबाई उचित हो जाए जो रखरखाव में अच्छा हो।
कुछ टैबलेट सप्ताह के हिसाब से 14 गोली का पैक होता है जैसे स्रर्पीन, वह 10 गोली 20 गोली 30 गोली के पैक में आना चाहिए।
पैकिंग के ऊपर दवाई का नाम पैसा एक्सपायरी इतना बड़ा लिखा जाए कि आराम से पढ़ा जा सके. अगर ऐसा होता है तो ये छोटी-छोटी बातें हमें बहुत आराम व लाभ देती है।
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