• Aapki Saheli
  • Astro Sathi
  • Business Khaskhabar
  • ifairer
  • iautoindia
1 of 1

घर-घर औषधि योजना में सम्मिलित अश्वगंधा की बहुआयामी उपयोगिता का वैज्ञानिक विश्लेषण

Scientific analysis of the multifaceted utility of Ashwagandha included in ghar ghar aushadhi yojana - Health Tips in Hindi

राजस्थान सरकार की घर-घर औषधि योजना में वन विभाग की पौधशालाओं में उगाकर लोगों को वितरण हेतु अश्वगंधा, गुडूची, कालमेघ और तुलसी शामिल किये गये हैं| आज की चर्चा अश्वगंधा के पक्ष में उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाणों पर है| अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा) जिसे 'इंडियन जिनसेंग' के नाम से भी जाना जाता है, आयुर्वेद और एथनोमेडिसिनल दोनों ही दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय झाड़ी है। यह एक उच्चकोटि का इम्यूनिटी बूस्टर, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी, एडाप्टोजेन, कार्डियोप्रोटेक्टिव, हेपैटोप्रोटेक्टिव, एंटी-स्ट्रेस, एंटी-डिप्रेसेंट, नूट्रोपिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-ऑक्सिडेंट, एंटी-एंग्जायटी, एंटी-कॉन्वेलसेंट, एंटी-ट्यूमर, एंटी-जीनोटॉक्सिक, एंटी-डायबेटिक, एंटी-हायपोक्सिक, एंटी-स्चिमिक, एंटी-अल्जाइमर्स, एंटी-पार्किंसन, एंटी-अर्थराइटिक, एंटीवायरल, एंटी-माइक्रोबियल गुणयुक्त द्रव्य है (देखें, डी.एस. मंडलीक, ए.जी. नामदेव, जर्नल ऑफ़ डाइटरी सप्लीमेंट्स, 18(2): 183-226; 2021)। शक्तिशाली एडेप्टोजेन होने के कारण यह मानसिक तनाव से रक्षा करता है तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

अश्वगंधा कोविड-19 के विरुद्ध प्रभावी माने जाने के प्रमाण क्या हैं? पहली बात तो यह है कि हाल ही में अनेक शोधपत्रों से स्पष्ट हुआ है कि अश्वगंधा में पाये जाने वाले विथेनॉलिड्स, विथेनोन, विथानोसाइड एक्स, क्वेर्सेटिन ग्लूकोसाइड आदि सार्स-कोव-2 के मेन-प्रोटियेज के साथ परस्पर क्रिया करते हुये इसकी गतिविधि को बाधित कर देते हैं। दूसरी बात यह है कि चूंकि अश्वगंधा की इम्यूनोमोड्यूलेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी आदि चिकित्सीय क्षमतायें और प्रभावी क्रियात्मकता पूर्व से ही ज्ञात हैं, इसलिये अश्वगंधा एन-कोव-2 प्रोटीन के खिलाफ कोविड-19 के उपचार में एक मज़बूत एंटीवायरल एजेंट के रूप में लिया जा रहा है। तीसरी बात यह है कि कोविड-19 के सन्दर्भ में इन-सिलिको, इन-वाइट्रो और इन-वाइवो अध्ययन इंगित करते हैं कि अश्वगंधा में इम्यून होमियोस्टेसिस को बनाये रखने, दर्द व सूजन को नियंत्रित करने, प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकाइन्स को नियंत्रित और कम करने, एंटी-स्ट्रेस, एंटीहाइपरटेन्सिव और एंटीडायबिटिक गतिविधियाँ तथा तंत्रिका तंत्र, हृदय, फेफड़े, यकृत और गुर्दे जैसे वाइटल ओर्गंस को सुरक्षित रखने की एकीकृत और व्यापक क्षमता है| चौथी बात यह है कि नेटवर्क फार्माकोलॉजी दृष्टिकोण से किये गये शोध विश्लेषणों द्वारा अश्वगंधा के बहु-उपयोगी होने के प्रमाण प्राप्त हुये हैं। पांचवीं बात यह कि अश्वगंधा के कोविड-19 के विरुद्ध प्रभावी पाये जाने के परिणाम क्लिनिकल ट्रायल्स में भी प्राप्त हुये हैं। और अंततः, ऊपर लिखे कारणों के साथ एक प्रश्न पूछना तो बनता है: यदि आधुनिक चिकित्सा ही रामबाण है, तो आयुर्वेदिक अश्वगंधा और इसके के योगों में 2800 से अधिक पेटेंट और पेटेंट्स के आवेदन क्यों?

आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज की शोध स्पष्ट करती है कि अश्वगंधा बुढ़ापे में घटे सीरम प्रोटीन फ़ॉक्सो3ए तथा एसआईआरटी3 को बढ़ाती है| अश्वगंधा रिएक्टिव ऑक्सीजन और फ्री-रेडिकल स्कैवेंजिंग, माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में सुधार, एपोप्टोसिस विनियमन और एंडोथेलियल फ़ंक्शन में सुधार भी करती है (देखें, एन. टंडन, एस.एस. यादव, जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 255: आर्टि. 112768; 2020)। कालमेघ, गुडूची, और तुलसी की तरह अश्वगंधा भी ओसेल्टामिविर व जानामिविर जैसी न्यूरामिनीडेज इनहिबिटर होने से एंटीवायरल है, हालांकि इन द्रव्यों के कार्य करने की विधि वस्तुतः बहु-क्रियात्मक है| इसीलिये अश्वगंधा अनेक वायरल रोगों के विरुद्ध उपयोगी द्रव्यों में शामिल हैं (देखें, एस. रस्तोगी, डी.एन. पाण्डेय व आर.एच, सिंह, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 23 अप्रैल 2020)|

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रारम्भ 6000 ईसा पूर्व से माना जाता है। तब से भारत में अश्वगंधा का उपयोग रसायन और औषधि के रूप में होता आया है। रसायनों में यह एक श्रेष्ठ रसायन है और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु गुडूची, आमलकी, हरीतकी, सतावरी, तुलसी आदि के साथ अश्वगंधा अग्रणी पंक्ति के द्रव्यों गिना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार मुख्यतः अश्वगंधा की जड़ों का चूर्ण प्रयोग होता है| लोक-चिकित्सा और घरेलू उपायों में पत्तियों का भी प्रयोग होता है| समकालीन प्रद्योगिकी से घनवटी बनाने हेतु पंचांग प्रयुक्त होता है, क्योंकि जड़ों के साथ साथ तने और पत्तियों में भी उपयोगी द्वितीयक चयापचयी द्रव्य पाए जाते हैं| आयुर्वेद में अश्वगंधा को बल्य, वाजीकर, रसायन, रोग-प्रतिरोधक, विषघ्न, अपस्मार-हर, शोथघ्न, संधि-शोथघ्न, व्रणरोपण, कम्पवात-हर, चिंता-हर, मेध्य, जंतुघ्न, कृमिघ्न माना गया है (देखें, वी.के. जोशी, ए. जोशी, जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 276: आर्टि. 114101, 2021)|

उम्र-आधारित रोगजनन का एक प्रमुख कारण डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म में गड़बड़ी होना माना जाता है। जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाये जाने वाले तंतुनुमा अणु को डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड या डी.एन.ए. कहा जाता है। इसी में अनुवांशिक कोड निहित रहता है। जैसे जैसे डी.एन.ए. डैमेज का बोझ बढ़ता जाता है, शरीर बुढ़ापे की ओर बढ़ता जाता है। शरीर की कोशिकाओं द्वारा डी.एन.ए. डैमेज के संकेत प्राप्त करने और टूट-फूट की मरम्मत करने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है। इस कारण बुढ़ापे में अनेक समस्यायें जैसे कैंसर, न्येरोडीजेनरेशन जैसी व्याधियां विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है। शोध से सिद्ध होता है कि अश्वगंधा जैसे रसायन बढ़ती उम्र के लोगों में डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म की गति को बढ़ा देते हैं व तोड़फोड़ की गति को कम कर देते हैं। बुढ़ापा आने का एक कारण ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इनफ्लेमेशन का बढ़ना भी है। रसायन द्रव्यों के उपयोग करते रहने से शरीर का व्याधिक्षमत्व बढ़ता है तथा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इनफ्लेमेशन में कमी होती है। संहिताओं की दृष्टि से देखें आयुर्वेद के रसायन दीर्घ-आयु, स्मरण-शक्ति, मेधा, आरोग्य, तरुणाई, चमकदार शरीर, मोहक रंग, उदार-स्वर, शरीर और इन्द्रिय में परम बल, विलक्षण वाणी, शिष्टाचार, कान्ति आदि प्राप्त करने का उपाय है (च.चि.,1.7-8): दीर्घमायुः स्मृतिं मेधामारोग्यं तरुणं वयः। प्रभावर्णस्वरौदार्यं देहेन्द्रियबलं परम्।। वाक्सिद्धिं प्रणतिं कान्तिं लभते ना रसायनात्। लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम्।।

चरकसंहिता में अश्वगंधा को वृष्य (बलवर्धक) के साथ साथ कुष्ठ और त्वचारोग, कंडू या अर्टिकेरिया, यक्ष्मा या ट्यूबरकुलोसिस तथा विभिन्न वात रोगों विशेषकर न्यूरोमस्कुलर दर्द के विरुद्ध निर्देशित किया गया है। सुश्रुतसंहिता में अश्वगंधा को वातरक्त, कफ रोगों, स्त्री-रोगों और यक्ष्मा आदि के विरुद्ध उपयोगी दर्शित किया गया है। इसी प्रकार अष्टांगहृदय में इसे विभिन्न मानसिक रोगों को ठीक करने के साथ-साथ शारीरिक-मानसिक बल बढ़ाने के लिये भी उपयोगी दर्शित किया गया है। अष्टांगसंग्रह तथा भावप्रकाश में इसे बल्य, वृष्य और रसायन माना गया है। जहाँ तक औषधीय योगों का प्रश्न है, चरकसंहिता में 21 योग, सुश्रुतसंहिता में 13 योग, अष्टांगहृदय में 13 योग, भैषज्यरत्नावली में 12 योग, शारंगधर संहिता में 12 योग वर्णित हैं जिनमें अश्वगंधा एकल औषधि तथा विभिन्न योगों के घटक द्रव्य के रूप में वर्णित है। अश्वगंधा की जड़ों और पत्तियों से अनेक विथेनोलाइड्स को अलग किया गया है| इनमें 12 प्रकार के अल्कलॉइड, 35 प्रकार के विथेनोलाइड्स और अनेक साइटोइंडोसाइड्स को पहचाना और संरचनाओं को स्पष्ट किया गया है (देखें, पी.के. मुखर्जी इत्यादि, जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 264: आर्टि. 113157, 2021)।

अश्वगंधा पर अनेक क्लीनिकल ट्रायल विभिन्न रोगों के विरुद्ध उपलब्ध हैं। इन अध्ययनों में अश्वगंधा हाइपोथाइरॉएडिज्म, शिजोफ्रेनिया, क्रॉनिक स्ट्रेस, एंजायटी और इनसोम्निया, मेमोरी और कॉग्निटिव इंप्रूवमेंट, ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, डायबिटीज-2, फर्टिलिटी, कोविड-19 आदि में प्रभावी और सुरक्षित पाया गया है। मस्तिष्क, तंत्रिका-तंत्र और शारीरिक शक्ति और कार्य पर अश्वगंधा के लाभकारी प्रभाव क्लिनिकल ट्रायल्स में भी सिद्ध हुये हैं। रसायन (अडेप्टोजेनिक) होने के कारण यह आयुर्वेद का सिरमौर द्रव्य है (देखें, एन. टंडन, एस.एस. यादव, जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 255: आर्टि. 112768; 2020)। कोविड-19 के विरुद्ध अश्वगंधा पर इस समय कम से कम 40 क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं या पूर्ण हो चुके हैं (देखें, क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, आई.सी.एम.आर, 2021)। हाल ही में प्रकाशित क्लिनिकल ट्रायल से पता चलता है कि अश्वगंधा कार्डियोरेस्पिरेटरी सहन-शक्ति को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है (देखें, एस. तिवारी इत्यादि, जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 272, आर्ट. 113929, 2021)। इसलिये यह लॉन्ग कोविड के प्रबंध में भी बहुत उपयोगी हो सकती है। अश्वगंधा शरीर के सामान्य कामकाज को बनाये रखने और मस्तिष्क और तंत्रिका कार्य को बेहतर करने के लिये भी उपयोगी है। हीमोग्लोबिन स्तर और लाल रक्त कणिकाओं की गिनती बढ़ाने और ऊर्जा स्तर में सुधार के लिये भी यह उपयोगी है।

रोचक बात यह है कि आज घर-घर औषधि योजना में सम्मिलित अश्वगंधा, गुडूची, कालमेघ और तुलसी सहित आयुर्वेद के तमाम औषधीय पौधों पर भारत से अधिक रुचि दुनिया के अन्य देशों के वैज्ञानिक ले रहे हैं। उदाहरण के लिये 27 मई 2021 तक प्रकाशित शोध पर किये गये हमारे एक विश्लेषण के अनुसार अश्वगंधा और उसमें पाये जाने वाले विदाफेरिन को जिन 17,258 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 10,771 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है| गुडूची को जिन 5,870 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 2,515 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है| कालमेघ और उसमें पाये जाने वाले एंड्रोग्रफोलॉईड को जिन 14,939 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 10,776 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है| तुलसी को जिन 11,215 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 5,410 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है| एक और उदाहरण हल्दी का है| हल्दी और उसमें पाये जाने वाले कर्क्युमिन को जिन 1,75,716 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 1,48,410 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है| इन आंकड़ों से यह बात स्पष्ट सिद्ध हो जाती है कि आज भारत के 5,000 वर्ष से अधिक प्राचीन आयुर्वेद ज्ञान पर भारत से अधिक शोध तो विदेश में हो रही है| लेकिन यहाँ यह आगाह करना जरूरी है कि अगर हम चाहते हैं कि आयुर्वेद दुनिया को निवारक और चिकित्सीय स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में सक्षम हो, तो दुनिया को इस पर भरोसा कराना होगा कि आयुर्वेद क्यों और कैसे काम करता है। इसके लिये फायटोमेडिसिनल शोध नहीं, बल्कि आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुरूप व्होल-सिस्टम क्लिनिकल-ट्रायल्स में ठोस निवेश आवश्यक है। संहिता, विज्ञान और अनुभव की त्रिवेणी ही मानवता की सेवा के लिये मजबूत वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि प्रदान कर पायेगी।

आज के इस आलेख पर देश के प्रतिष्ठित वैद्यों, वैद्य बालेन्दु प्रकाश, वैद्य वी.बी. मिश्रा, वैद्य प्रोफेसर सत्येन्द्र नारायण ओझा, वैद्य अरविन्द कुमार, वैद्य प्रोफेसर गिरिराज शर्मा, वैद्य पवन मदान, वैद्य इंदु शेखर तत्पुरुष, वैद्य शिखा प्रकाश, वैद्य हरिओम शर्मा, वैद्य अरुण तिवारी, वैद्य चंद्रेश तिवारी, वैद्य पंकज छयानी, वैद्य भार्गव ठक्कर, वैद्य बी.के. मिश्रा, वैद्य ऋतुराज वर्मा, वैद्य आनंद पाण्डेय के सुझाव महत्वपूर्ण रहे हैं| सभी का आभार| संहिताओं, वैज्ञानिक शोध और अनुभव का निचोड़ यह है कि उम्र-आधारित रोगजनन रोकने व व्याधिक्षमत्व बढ़ाने हेतु अश्वगंधा रसायन के रूप में बहुत प्रभावी है। शारीरिक-मानसिक बल एक साथ बढ़ाना हो तो अश्वगंधा से बेहतर कोई विकल्प नहीं। कोविड-19 की चिकित्सा व लॉन्ग-कोविड दोनों ही परिस्थितियों को प्रबंधित करने के लिये अश्वगंधा आयुर्वेद का श्रेष्ठ द्रव्य है। ऐसी स्थिति में हमें अपने घरों में औषधीय पौधे उगाने का सीधा लाभ यह है कि रात-विरात जरूरत पड़ने पर बाज़ार नहीं भागना पड़ेगा। यह ध्यान अवश्य रखें कि आयुर्वेदिक औषधि सदैव वैद्यों के परामर्श से ही लेना उचित और लाभकारी रहता है।

डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं।)

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

यह भी पढ़े

Web Title-Scientific analysis of the multifaceted utility of Ashwagandha included in ghar ghar aushadhi yojana
खास खबर Hindi News के अपडेट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक और ट्विटर पर फॉलो करे!
(News in Hindi खास खबर पर)
Tags: ghar ghar aushadhi yojana, scientific analysis, multifaceted, ashwagandha, door-to-door drug planning
Khaskhabar.com Facebook Page:

लाइफस्टाइल

आपका राज्य

Traffic

जीवन मंत्र

Daily Horoscope

Copyright © 2024 Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved