नई दिल्ली। वसायुक्त यकृत (फैटी लिवर) एक ऐसा विकार है जो वसा के बहुत ज्यादा बनने के कारण होता है, जिससे यकृत यानी आपके जिगर का क्षय हो सकता है। वर्ष 2019-2018 की तुलना में इस साल गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के मामलों में वृद्धि हुई है। हालांकि, अभी तक कोई निश्चित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि वे हर महीने कम से कम 10 से 12 नए मामले देख रहे हैं जो हर आयु वर्ग के हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सभी प्रकार के एनएएफएलडी घातक नहीं हैं, लेकिन इनकी अनदेखी आगे चलकर परेशानी का सबब बन सकती है। एक बार पता लगने के बाद, रोगी को यह जानने के लिए आगे के परीक्षणों से गुजरना होता है कि जिगर में जख्म या सूजन तो नहीं है। जिगर की सूजन के लगभग 20 प्रतिशत मामलों में सिरोसिस विकसित होने की संभावना होती है।
इसे एक मौन हत्यारे के रूप में जाना जाता है। जब तक स्थिति में प्रगति न हो, तब तक लक्षणों की स्पष्ट कमी होती है। हेल्थ केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ.के.के. अग्रवाल का कहना है कि एनएएफएलडी में यकृत की अनेक दशाओं को शामिल माना जाता है, जो ऐसे लोगों को प्रभावित करती हैं जो शराब नहीं पीते हैं।
जैसा कि नाम से पता चलता है, इस स्थिति की मुख्य विशेषता यकृत कोशिकाओं में बहुत अधिक वसा का जमा होना है। एक स्वस्थ जिगर में कम या बिल्कुल भी वसा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनएएफएलडी की मुख्य जटिलता सिरोसिस है, जो यकृत में देर से पडऩे वाले निशान (फाइब्रोसिस) हैं।
सिरोसिस यकृत की चोट की प्रतिक्रिया में होता है, जैसे कि नॉनक्लॉजिक स्टीटोहेपेटाइटिस में जिगर सूजन को रोकने की कोशिश करता है और इसके लिए यह स्कारिंग क्षेत्रों (फाइब्रोसिस) को उत्पन्न करता है। निरंतर सूजन के साथ, फाइब्रोसिस अधिक से अधिक यकृत ऊतक ग्रहण करने के लिए फैलता है।
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