नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने एक खास तरह की शहद के बारे में पता लगाया है, जो देशी बिना डंक वाली मधुमक्खियां बनाती हैं। यह शहद आम शहद से अलग है, क्योंकि इसमें ऐसे गुण पाए गए हैं जो बैक्टीरिया को मारने में मदद कर सकते हैं।
स्थानीय लोगों के बीच इस शहद को 'शुगरबैग हनी' कहा जाता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रोप्लेबिया ऑस्ट्रेलिस जैसी तीन प्रजातियों के मिले शहद में ऐसे तत्व है, जो बैक्टीरिया को मारने की ताकत रखते हैं, जिससे यह एंटीबायोटिक दवाओं का एक बेहतर विकल्प बन सकता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने देखा कि इस शहद को गर्म करने के बाद भी इसमें बैक्टीरिया को मारने वाली ताकत बनी रहती है। साथ ही लंबे समय तक शहद रखे जाने पर यह अपने खास गुणों को नहीं खोता है।
यह खासियत इस शहद को यूरोपीय मधुमक्खियों के शहद से अलग बनाती है। यूरोपीय मधुमक्खियों के शहद की एंटीबायोटिक प्रॉपर्टी ज्यादातर हाइड्रोजन पेरोक्साइड पर निर्भर करती है, जो गर्मी या समय के साथ कमजोर हो सकती है।
अध्ययन में पता चला है कि बिना डंक वाली मधुमक्खियों के शहद की कीटाणु मारने की ताकत दो तरह से, हाइड्रोजन पेरोक्साइड और गैर-हाइड्रोजन पेरोक्साइड के जरिए काम करती है।
अध्ययन के मुख्य लेखक केन्या फर्नांडीस ने बताया कि इस शहद की कीटाणु मारने वाली ताकत हर जगह लगभग एक जैसी पाई गई है। इस ताकत के लिए सिर्फ पौधे ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि मधुमक्खियां खुद भी इसमें मुख्य भूमिका निभाती हैं।
सिडनी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डी कार्टर ने कहा, ''शुगरबैग शहद हर जगह और हर समय लगभग एक जैसा काम करता है, लेकिन आम मधुमक्खी का शहद मौसम और फूलों के बदलाव के साथ अलग-अलग असर करता है।''
अमेरिकन सोसायटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी द्वारा प्रकाशित एप्लाइड एंड एनवायरनमेंटल माइक्रोबायोलॉजी में अध्ययन में कहा गया है कि यह शहद परंपरागत तौर पर ऑस्ट्रेलिया के लोकल लोगों द्वारा खाना खाने और इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। अब इसे सिंथेटिक एंटीबायोटिक्स की जगह एक प्राकृतिक और असरदार विकल्प माना जा रहा है।
हर बिना डंक वाली मधुमक्खी का छत्ता साल में सिर्फ आधा लीटर शहद बनाता है, लेकिन इनका उत्पादन बड़े पैमाने पर हो सकता है।
--आईएएनएस
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